तुम क्यों सोचोगे
कितनी बेबस कितनी लाचार
जीवन जीना है दुश्वार
क्या भूलकर भी तुमने कभी पल भर को सोचा
तुम क्यों सोचोगे
क्योंकि तुम तो छलते आये हो
युगों युगों से ….
कभी सिद्दार्थ बनकर
यशोधरा को रुलाया
कभी लक्ष्मण बनकर
उर्मिला को सताया
कभी पांडव बनकर
द्रौपदी को दांव पर लगाया
तुम क्यों सोचोगे
तुम तो तुलसीदास हो
जिस रत्नावली ने तुम्हे
ईश्वर तक पहुँचाया
उसी को तुमने ताड़ना का अधिकारी बनाया
तुम क्यों सोचोगे
तुम तो दुष्यंत हो
शकुंतला को क्यों पहचानोगे
उसके पास तो था पहचान चिन्ह
पर
मेरी तो संपत्ति है केवल
अविरल झरते आंसुओं का अम्बार
कितनी बेबस कितनी लाचार
जीवन जीना है दुश्वार
क्या भूलकर भी तुमने कभी पल भर को सोचा
तुम क्यों सोचोगे
तुम तो त्रेता के राम हो
जिसने सीता को वनों वनों भटकाया
अग्नि परीक्षा के बाद भी ठुकराया
फिर भी तुम सीता के आराध्य बने रहे
उसके पास तो था
पितृ रुपी बाल्मीकि का प्यार
मेरी निधि तो है केवल , मेरी पीड़ा का संसार
कितनी बेबस कितनी लाचार
जीवन जीना है दुश्वार
क्या भूलकर भी तुमने कभी पल भर को सोचा
तुम क्यों सोचोगे????
Author: Jyotsna Saxena (ज्योत्सना सक्सेना)