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”छोटी-सी प्यारी-सी नन्ही-सी बिटिया”

रह-रह कर याद आती है वह छोटी-सी प्यारी-सी नन्ही-सी बिटिया बहुत, बार-बार.... मन-ही-मन मुसकराने वाली सारी दुनिया से न्यारी वह कोमल-सी छुटकी-सी फूलों-सी बिटिया. प्रश्न उठता है यह बार-बार क्यों होती है बेटी भाव-प्रवीणा बेटों की तुलना में कोमल,…
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''छोटी-सी प्यारी-सी नन्ही-सी बिटिया''

रह-रह कर याद आती है वह छोटी-सी प्यारी-सी नन्ही-सी बिटिया बहुत, बार-बार.... मन-ही-मन मुसकराने वाली सारी दुनिया से न्यारी वह कोमल-सी छुटकी-सी फूलों-सी बिटिया. प्रश्न उठता है यह बार-बार क्यों होती है बेटी भाव-प्रवीणा बेटों की तुलना में कोमल,…
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”भोलापन तेरी आँखों का”

भोलापन तेरी आँखों का , क्यूँ उतर-उतर आता है तेरे रस-भीगे ओंठों में, शब्द जो निकलना चाहते हैं... सकुचाकर दबे-दबे से क्यों ठहर-ठहर जाते हैं, रह जाते हैं मेरे मनोभाव टकटकी लगाए से, सिहर-सिहर जाते हैं क्यों स्वप्न मेरे उतरकर मेरी आँखों से…
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''भोलापन तेरी आँखों का''

भोलापन तेरी आँखों का , क्यूँ उतर-उतर आता है तेरे रस-भीगे ओंठों में, शब्द जो निकलना चाहते हैं... सकुचाकर दबे-दबे से क्यों ठहर-ठहर जाते हैं, रह जाते हैं मेरे मनोभाव टकटकी लगाए से, सिहर-सिहर जाते हैं क्यों स्वप्न मेरे उतरकर मेरी आँखों से…
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वह ‘लड़की’ याद आती है

उम्र की इस दहलीज पर जब देखकर हमें आईना भी बनाता है अपना मुँह, कुछ शरमाकर , कुछ इठलाकर मुसकराती-सी वह लड़की याद आती है .... जब हम भी थे कुछ उसी की तरह उसी की उम्र में...उसी की तरह सकुचाकर मुसकराने वाले. तब हम ऐसे थे..., जैसे कोई पंछी देखकर…
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वह 'लड़की' याद आती है

उम्र की इस दहलीज पर जब देखकर हमें आईना भी बनाता है अपना मुँह, कुछ शरमाकर , कुछ इठलाकर मुसकराती-सी वह लड़की याद आती है .... जब हम भी थे कुछ उसी की तरह उसी की उम्र में...उसी की तरह सकुचाकर मुसकराने वाले. तब हम ऐसे थे..., जैसे कोई पंछी देखकर…
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फिर याद आ गए तुम

तारों के झिलमिलाते आँगन में अम्बर के अंतहीन ह्रदय में अंकित पूर्णिमा का चाँद देखते ही एक बार फिर याद आ गए तुम ---- युगल पंछियों का नीड़ की ओर बढ़ना देख धरा की प्यास श्यामल पावसों का उमड़ना मुखरित हुआ अनूठा एहसास प्रतीक्षारत साँझ में एक बार फिर…
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मेरे अश्क़

मेरे अश्क़ !! बातूनी हैं बहुत तन्हाइयों में सखियों सी बेहिसाब बातें करते हैं---- मेरे अश्क़ !! हताशा का रुख मोड़ अपनेपन से मुस्कुराकर मिलते हैं---- मेरे अश्क़ !! पारदर्शी मोती के वलय में खुशियों के सतरंगी रंग भरते हैं----- मेरे अश्क़ !! ख़्वाबों…
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फूल की फरयाद

हो आदमी खुदा के तो मान भी जाओ यू बाग़ की डाली को विधवा न बनाओ एक फूल हूँ मैं मुझको बिलकुल न सताओ शम्मा हूँ मोहब्बत की यू मुझको जलाओ मैं नूर हूँ खुदा का सबको ये बताओ पैगाम हूँ खुदा का ये भूल न जाओ हो आदमी........... मेरा जहाँ में काम है…
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लम्हों

गुजर गये लम्हे धीरे धीरे और वे सब यादो में 'बदलते' रहे। हम तेरे साथ की ख़ुशी में भूल गये की 'लम्हे' कभी नही होते सदा के लिए 'यादे' ही साथ रहती है अंत तक । लम्हों की खुशीयां तो क्षणिक होती है यादे ही तो है जो उन लम्हों को बार बार 'जीवन' देती…
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