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माउथ फ्रेशनर्स से सावधान

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सांसों को तरोताजा रखने या महकाने के लिए अगर आप माउथ फ्रेशनर्स का इस्तेमाल करते हैं तो सावधान हो जाइए। साइंटिस्ट्स का कहना है कि माउथ फ्रेशनर्स हार्ट अटैक या स्ट्रोक की वजह भी बन सकते हैं। ब्रिटेन की क्वीन मेरी यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट्स का कहना है कि माउथ फ्रेशनर्स हमारे मुंह में रहने वाले खराब बैक्टीरिया के साथ-साथ फ्रेंडली बैक्टीरिया को भी मार देते हैं। ये दोस्त बैक्टीरिया हमारी खून की नलियों को सेहतमंद बनाए रखने के लिए जरूरी होते हैं और इन्हें रिलेक्स रखते हैं। इनका सफाया होने से खून की नलियों में कड़ापन आने लगता है और ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है। इसका नतीजा हार्ट अटैक या स्ट्रोक हो सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर आपके मसूड़ों में कोई इन्फेक्शन है तो आप बेशक माउथ फ्रेशनर्स यूज कर सकते हैं , लेकिन बिना किसी वजह के ऐसा करना नुकसानदेह भी हो सकता है।

एचआईवी से निपटेगा जरेनिअम
एचआईवी और एड्स का मुकाबला करने के लिए एक अर्से से कोशिशें जारी हैं। साइंटिस्ट्स का कहना है कि अपने सदाबहार खूबसूरत फूलों से गुलजार रहने वाला पौधा जरेनिअम एचआईवी का मुकाबला करने में मददगार हो सकता है। जर्मनी के वैज्ञानिकों ने एक स्टडी के हवाले से कहा है कि दक्षिण अफ्रीकी जरेनिअम में ऐसे तत्व पाए जाते हैं, जो एचआईवी वायरस का मुकाबला कर सकते हैं और इन्हें इंसान के सेल्स में जाने से रोक सकते हैं। इस तरह ये एड्स के इलाज में भी कारगर हो सकते हैं। साइंटिस्ट्स ने पाया कि जरेनिअम के अर्क में पाए जाने वाले पॉलीफिनॉल्स एचआईवी का मुकाबला करने में सक्षम होते हैं। इस कारण ये इस वायरस को बेकार कर सकते हैं। इस अर्क को दवा के रूप में तैयार करके बाजार में लाया जा सकता है। जरेनिअम को आयुर्वेद में कषायमूल के नाम से जाना जाता है।
 

होलोग्राम्स बताएंगे सेहत का हाल
आपकी सेहत का हाल बयान करने के लिए अब स्मार्ट होलोग्राम मोर्चा संभालने वाले हैं। वैज्ञानिकों ने ऐसे होलोग्राम्स तैयार किए हैं, जो शरीर के फ्लूड्स या सांसों के संपर्क में आने पर यह बता सकते हैं कि आपको क्या बीमारी है या किस बीमारी के लक्षण पनप रहे हैं। ये होलोग्राम बेहद कम खर्च में यह बयान कर सकते हैं कि कहीं आप दिल की बीमारी, डायबीटीज, किसी तरह के इन्फेक्शन या हॉर्मोन के असंतुलन के शिकार तो नहीं हैं। इन होलोग्राम्स का विकास ब्रिटेन की कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने किया है। ये शरीर के फ्लूड्स या सांसों के संपर्क में आने पर अपना रंग बदल देते हैं। हर बीमारी की पहचान के लिए एक अलग रंग होता है। ब्लड, यूरीन या किसी भी फ्लूड के इनके संपर्क में आने पर बीमारी की हालत में इनका कलर बदल जाता है और रोग की पहचान करना आसान होता है। इनका घर पर भी प्रयोग किया जा सकता है।
मिथ मंथन : सुरेश उपाध्याय
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