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मरीज की जान जाए, लेकिन बिना डिपॉजिट नहीं शुरू करेगे उपचार

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गोकुलदास हॉस्पिटल का असल सच, मरीज की जान जाए, लेकिन बिना डिपॉजिट नहीं शुरू करेगे उपचार। आखिरकार एमवाई का ही लेना पड़ा सहारा नहीं तो मरीज की चली जाती जान।

इंदौर। शहर के निजी हॉस्पिटल की दुकानदारी की दर्जनों कारस्तानियो से शहर का हर कोई नागरिक, अधिकारी, जनप्रतिनिधि वाकिफ है। इसी कड़ी में रविवार को इंदौर के गोकुलदास हॉस्पिटल प्रबंधन की अमानवीयता का एक और किस्सा जुड़ गया है। दरअसल 24-25 जुलाई रविवार-सोमवार की दरमियानी रात को इंदौर के नजदीक धार से एक युवक को लाया गया। उसकी स्थिति काफी गंभीर थी। धार के महाजन हॉस्पिटल से उसे इंदौर रैफर किया गया था। लिहाजा परिजन ताबड़तोड़ उसे जैसे तैसे रात डेढ़ बजे इंदौर के गोकुलदास हॉस्पिटल लेकर पहुंच गए। ताकि जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे युवक की जान बचाई जा सके। लेकिन हॉस्पिटल पहुंचने पर हुआ कुछ उल्टा। क्योंकि यहां मुख्य काउंटर पर बैठे हॉस्पिटल कर्मचारी राजेश शर्मा ने उपचार शुरू नहीं करने के पूर्व ही 30 हजार रुपए सबसे पहले जमा करने का दबाव परिजनों पर बनाया। लिहाजा पहले से परेशान और जल्दबाजी में जरूरत के मुताबिक पैसे नही लेकर निकले परिजनों ने देर रात अपने परिचितों, रिश्तेदारों को फोन लगाना शुरू किया। और बस एक ही मांग बस 30 हजार रुपए लेकर किसी भी स्थिति में गोकुलदास हॉस्पिटल पहुंच जाओ। लेकिन एक तो रविवार की रात और इतनी देरी से एक दम 30 हजार रुपयों की व्यवस्था करना तो बड़ी बात नही थी। लेकिन किसी कारणवश कोई भी परिचित और रिश्तेदार नहीं कर पाया। लिहाजा कुछ परिचितों ने हॉस्पिटल की और से परिजनों पर सबसे पहले 30 हजार रुपयों का दबाव बना रहे राजेश शर्मा से कहा भी की। शर्मा जी मरीज की जान बचाना जरूरी है। पैसे तो सुबह होते ही जमा हो जायेगे। लेकिन गोकुलदास हॉस्पिटल का उक्त कर्मचारी बिलकुल भी नहीं माना। और अस्पताल प्रबंधन के नियम कायदों का सभी को हवाला देता रहा। समय बीतता जा रहा था। और उक्त युवक की हालत भी बिगड़ती जा रही थी। लेकिन गोकुलदास हॉस्पिटल के किसी भी जिम्मेदार का मन नही पसीजा। लिहाजा समय का तकाजा देख और अपने मरीज की जान को बचाने की फिक्र में डूबे परिजन युवक को एमवाई हॉस्पिटल ले जाना ही उचित समझ रहे थे। उन्होंने किया भी ऐसा ही। फिलहाल युवक की जान बच गई है। और वह अब खतरे से बाहर है। लेकिन इस पूरे मामले में एक बार फिर इंदौर के निजी हॉस्पिटल की दुकानदारी एक बार दोबारा उजागर हो गई। इस पूरे मामले से यह साबित हो गया की सेवा कार्य की दर्जनों बकवास करने वाले गोकुलदास हो या अन्य निजी हॉस्पिटल जिन्हे सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाने से मतलब रहता है। किसी भी जिंदगी की उन्हे एक प्रतिशत भी कोई परवाह नहीं।