अलविदा राहत कुरेशी इंदौरी साहब
बुलंद आवाज़- खनकदार तलफ़्फ़ुज़, रौबदार शख्सियत, लाखो अशआर, नज़्में, शेरो शायरी, नग़्मे जो उन्हें मकबूलियत और मारूफियत के साथ तकयामत तक हमारे बीच मे छोड़ गए वह थे राहत इंदौरी साहब हम राहत नामा लिखने निकले तो यह उम्र छोटी पड़ जाएगी, मेरे कुछ दोस्तों ने राहत साहब और फिल्मों पर कुछ लिखने की इल्तिजा की।
राहत साहब के कुछ चुनिंदा गीतों के साथ हमारी श्रद्धांजलि प्रस्तुत है
आज हमने दिल का हर किस्सा – सर- महेश भट्ट
तुमसा कोई प्यारा कोई मासूम नही है – खुद्दार-गोविंदा
दिल को हज़ार बार रोका- मर्डर-
देख ले आंखों में आंखे डाल सिख ले -मुन्ना भाई
चोरी चोरी ज़ब नज़रे मिली- करीब
धुन धुन – मिशन कश्मीर
नींद चुराई मेरी किसने ओ सनम – इश्क
कोई जाए तो ले आए मेरी लाख दुवाए- घातक
मुर्शीदा – बेगम जान,
देखो देखो जानम हम दिल तेरे लिए लाए- इश्क
और भी बेधुमार नग़्मे जो उनकी कलम से रिसते हुवे अवाम के दिलो तक पहुचे थे और कयामत तक हमारे बीच राहत साहब को हयात(ज़िंदा) रखेगे।
एक नग़्मे पर चर्चा कर लेते है…..
फ़िल्म मुन्नाभाई एम बी बी एस
“देख ले आंखों में आँखे डाल,
सिख ले इस पल में जीना यार,”
यार ज़रा माहौल बना
हर पल मैं पी बस एक दवा
जी खोल के जी
कुछ कम ही सही पर शान से जी
याद रख मरणा है बस एक बार
मरने से पहले जीना सीख ले
बाइया साँसों की खुद पे डाले
बाइया जीवन है बर्फ की नैया
नैया पिघले होले होले
चाहे हंस ले या चाहे रो ले
मरने से पहले जीना सीख ले
इन्ही पंक्तियों को कागज पर ऊंकैर कर राहत साहब खुशनुमा ज़िन्दगी की खुशबू लूटा गए
उनकी यह कल्पना की जिंदगी रफ्ता रफ्ता बर्फ की मानिंद पिघल रही है यह तसव्वुर दिल की गहराईयों में घर कर गया है साथ ही ज़िन्दगी मिली एक बार हंस ले या रो ले पर जीना सीख ले
जी खोल के जी इस पंक्ति को राहत साहब खुद जीते थे और यह हमारा आंखों देखा है वह हर पल को अपने मज़ाहिया अंदाज़ के साथ संजीदगी पिरोते चलते थे,
जीना सीख ले- यह परिकल्पना एक कामयाब ज़िन्दगी के लिए एक फ़लसफ़ा हो सकती है
यह पंक्तिया हमे निसन्देह प्रभावित करती है साथ ही प्रेरणा देती है,
जब भी अब शायरी की बात होंगी तो कुछ इस तरह से कालखंड का बंटवारा होगा कि
राहत से पहले और राहत के बाद
जब भी मुस्तकबिल(भविष्य) में शायरी अदब का बंटवारा होगा तब यही लिखा जाएगा
के राहत के पहले और राहत के बाद
अलविदा एक युग का
एक शख्सियत का
अलविदा आला दर्जे की शायरी को
चर्चा बाकी रही…. फिर किसी दिन किसी और नग़्मे पर बातचीत…. बाकी रही
फ़िल्म समीक्षक : इदरीस खत्री