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रेनकोट में शराफत से भीगता आमआदमी !

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बारिश का मौसम अपने शबाब पर है | रेनकोट पहने लोग सड़कों पर कदमताल कर रहे हैं | पता नहीं रेनकोट पहने लोग कदमताल कर रहे हैं या फिर लोगों को अपने भीतर समेटे रेनकोट छपाक-छई का खेल खेल रहे हैं | मुद्दे की बात यह है कि यदि रेनकोट बारिश में घर से बाहर निकलने का नैतिक साहस ना दे रहे होते, तो शायद लोग अपने घरों में दुबके बारिश की शिद्दत पर केवल बतकही कर रहे होते | वे अपने घरों में बैठकर बारिश का मुफ़्त का खेल-तमाशा निहार रहे होते | मौज में कल्पनाओं के घोड़े दौड़ा रहे होते । या फिर हो सकता है वे रेनकोट पहनकर अपने बाथरूम में कृतिम बारिश का लुत्फ़ उठाने की मनभावन प्रेक्टिस साध रहे होते | वैसे भी बारिश तभी मनमोहिनी लगती है, जब आप उसे तन और मन से बरसते हुए साक्षात् फील कर रहे होते हैं |

बहरहाल, बारिश में भीगते हुए लोगों की मूक भावनाएं प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य में रमने लगी हैं | उनके स्वानंद में परमानन्द का अलौकिक भोग लग रहा है | कोई सावन की वर्जिन हरियाली को निहार रहा है | तो कोई हरियाली में अपने वर्जिन अरमानों को हरियाते हुए फील कर रहा है | कोई रिमझिम का छन-छन करता संतूर-वादन सुन रहा है | तो कोई गरजते-बरसते बादलों में नगाड़ों के नाद सुनते हुए आसमान का घना श्यामपन ताक रहा है | कोई अपनी छतरी की छत्रछाया को ढाल समझ बारिश से लोहा ले रहा है | तो कोई रेनकोट पहने एलियन बना बारिश की बूंदों का फौरी प्रतिकार कर रहा है |

उधर, बारिश भी किसी तौर कम नहीं पड़ रही | वह छातों के कमजोर चक्रव्यूहों को भेदकर आधे शरीरों को गहरे भीतर तक भीगो रही है | तो वहीँ रेनकोट के सुरक्षा कवचों में भीतर तक चू-कर औचक सेंधमारी भी कर रही है | फिर भी लोगों का सशंकित भरोसा प्रबल है कि रेनकोट उन्हें पक्की सुरक्षा प्रदान कर रहा है | जबकि दरहकीक़त रेनकोट खुद अपनी सुरक्षा तय नहीं कर पा रहा | उसकी चाक-चौबंद सुरक्षा व्यवस्था में भीतरी पोलपट्टी के अनेकों गैर सरकारी सुराख उभर आए हैं | सरकारी जैसे होते तो जनमानस सहन भी कर लेता क्योंकि जनमानस का डीएनए इसका भरपूर आदी है । मगर गजब यह कि उसे इस पोलपट्टी का पता भी नहीं चल रहा | वैसे पता तो रेनकोट पहनने वाले को कभी चलता भी नहीं है | मगर बारिश से बचने की जुगत में वह भला भीगने के सिवा कर भी क्या सकता है | अतः रेनकोट पहना आदमी बड़ी ही शराफत से सुराखों की दुनियावी साज़िश में भीग रहा है | साथ ही उसकी शराफत भी बड़ी ही शराफत से भीगते हुए अपने हालात खुद बयां कर रही है | उधर, रेनकोट अपनी पोलपट्टी पर धीमे-धीमे मुस्कुरा भी रहा है | जबकि दोनों को भीगते हुए देखना रेनकोट की शराफत की पक्की गारंटी मान लिया गया है |

दूसरी तरफ, बारिश में सड़कों पर किसम-किसम के गड्ढे उभर आए हैं | कोई छोटा है तो कोई मंझोला | तो कोई छोटे-मोटे तालाब के आकार का बड़े वाला गड्ढा | लोग सड़कों पर अनवरत आ-जा रहे हैं | गड्ढे सड़कों पर लेटे-लेटे खिलखिला रहे हैं | जब गड्ढे जरा ज्यादा ही खिलखिला लेते हैं, तो वे सड़क चलते राहगीरों को भी बे-इज्जत कर अपनी खिलखिलाहट में शामिल कर लेते हैं | फिर तीनों मिलकर साझा ही अपने हालात पर खिलखिला लेते हैं | वे न खिलखिलाएं तो भी मजबूरी तो उन पर हंस ही लेती है | चूँकि तमाशा मुफ़्त का है और नज़ारा सरे-बाज़ार है अतः राह चलते लोगों का भी खिलखिलाना तो बनता ही है | इस गुटनिरपेक्ष खिलखिलाहट के दरमियाँ शहर की हरियाली और रास्ता दोनों ही बारिश की शान में जिंदाबाद बने हुए हैं |

वैसे गड्ढों को पता है कि वे कभी कालजयी नहीं हैं | मगर इन गड्ढा-युक्त सड़कों को बनाने वाले ठेकेदार की फ़ितरत तो कालजयी अवश्य ही है | यह सोचकर सारा शहर ही बारिश में मिलजुलकर जोरों से खिलखिला रहा है !

लेखक :- राजेश सेन

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