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Poet’s Corner

A collection of Poems. . . .

ड्रिंक एंड ड्राइव

माँ मैं एक पार्टी में गया था।तूने मुझे शराब नहीं पीनेको कहा था, इसीलिए बाकी लोग शराब पीकर मस्ती कर रहे थे और मैं सोडा पीता रहा।लेकिन मुझे सचमुच अपने परगर्व हो रहा थामाँ, जैसा तूने कहा था कि 'शराब पीकरगाड़ी नहीं चलाना'। मैंने
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“मां से सीखा है” – मदर्स डे स्पेशल

मां को बच्चों की प्रथम गुरु कहा है।मां हमेशा अपने बच्चों को सही-गलत और जीवन के महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाती है।जीवन में जब भी कुछ समझ नहीं आता, कोई रास्ता नहीं सूझता तो मां से बात करने से उनकी गोद में सिर रखकर अपने मन का हाल उन्हें बताने से हमें
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तुम अस्पताल के लिये लड़े कब ?

तुम अस्पताल के लिये लड़े कब ??तुम तो नक्सलियों के साथ देश के विरुद्ध ही लड़ते रहे..तुम तो पुलिस, CRPF और पैरामिलेट्री फोर्स से RDX बिछाकर , बम से उड़ाकर और घात लगाकर लड़ते रहे .. तुम अस्पताल के लिये लड़े कब ?तुम तो कभी नार्थईस्ट, तो कभी
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उन सभी बेटियों को समर्पित, जो दूर, अपने संसार में व्यस्त हैं, और अपने घर गृहस्थी कि कर्तव्य निभा…

माँ का घर ,जो अब भी नहीं भूला !! बरसों बीत गए ,उस घर से विदा हुए ,बरसों बीत गए ,नई दुनिया बसाए हुए ,पर न जानें क्या बात है ?शाम ढलते ही मन ,उस घर पहुँच जाता है !! माँ की आवाज़ सुनने को ,मन आज भी तरसता है ,महक माँ के खाने की ,आज भी
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“मैंने दहेज़ नहीं माँगा”

कुछ महिलाए ऐसी भी है जो अधिकार का दुरप्रयोग कर रही है... साहब मैं थाने नहीं आउंगा,अपने इस घर से कहीं नहीं जाउंगा,माना पत्नी से थोड़ा मन-मुटाव था,सोच में अन्तर और विचारों में खिंचाव था,पर यकीन मानिए साहब, “मैंने दहेज़ नहीं माँगा” मानता
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।। पटाक्षेप ।।

ये विरासतये फलसफेये शोहरतेंये नामावरीये सियासत एक दिनसब रह जाएगापीछे बहुत पीछेजब वक़्त से आगेनिकल जायेंगे हम यकीं नहीं आताजब तलकवह समय नहीं आताआदमी अचानकचला नहीं जाता जिंदगी अच्छी औरसच्ची लगती हैमुस्कुराती हुईहंसती खेलतीनटखट नाटक
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कहना ज़रूर

कभी जो आये मन में कोई बातउसे कहना ज़रूरन करना वक्त का इंतज़ारन होना मगरूर । जब पिता का किया कुछदिल को छू जायेतो जाकर गले उनकेलगना ज़रूर।कभी जो आये मन में कोई बातउसे कहना ज़रूर बनाये जब माँ कुछ तुम्हारे मन काकांपते हाथों कोचूम लेना
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माँ… तुम लौट आओ ना!

बटोही में बनाकर दाल जीरे का छौंक लगाओ ना बहुत भूखा हूँ चूल्हे की गरम रोटी खिलाओ ना दीवाली आ रही है माँ नए कपड़े सिलाओ ना माँ...तुम लौट आओ माँ। बच्चों को पढ़ाकर थककर तुम स्कूल से लौटो अनर्गल मैं आलापों से तुम्हें नाराज़ कर दूं तो जैसे तब…
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कफन

कफ़न ओढ़ कर मैं चला बिना चलाये पाँव लोग कांधे बदलते रहे ले जाने को श्मशान क्या क्या नही कमाया करके श्रम दिन और रात कफ़न मिला बिना जेब का जाना पड़ा खाली हाथ जो सारी उम्र कफ़न पहनने से हिचकते रहे मरने पर बड़ी मजबूरी में कफनान्तर्गत रहे है मेरा…
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“मैंने दहेज़ नहीं माँगा”

साहब मैं थाने नहीं आउंगा,अपने इस घर से कहीं नहीं जाउंगा,माना पत्नी से थोड़ा मन-मुटाव था,सोच में अन्तर और विचारों में खिंचाव था,पर यकीन मानिए साहब, “मैंने दहेज़ नहीं माँगा”मानता हूँ कानून आज पत्नी के पास है,महिलाओं का समाज में हो रहा विकास
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