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आसिफ बसरा अलविदा

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आसिफ के कुछ निर्देशक मित्रों से यह बात पता चली की आसिफ अक्सर बोला करते थे
हमारी फ़िल्म इंडस्ट्री स्टार अदाकारों पर केंद्रित है जबकि जितनी महत्ता हीरो की होती है उतनी महत्ता चरित्र अभिनेताओं की भी होती है, लेकिन अफसोस सहयोगी अदाकारों को उतना महत्व नही मिल पाता है।
आसिफ 12 नवम्बर को फांसी के फंदे पर झूल गए और आसिफ से मरहूम आसिफ बसरा हो गए और पीछे छोड़ गए अपनी गौरवमयी फ़िल्म और रंगमंचीय इतिहास।
फिल्में :-
ब्लेक फ्राइडे, छोटा किरदार पर सराहनीय, लव इन नेपाल, परज़ानिया, ऑउट सोर्स से हॉलीवुड में पहचान मिली, वन नाइट विथ किंग में कैमियो, जब वी मेट, तंदूरी लव, चल चला चल हरिलाल, वन्स अपॉन के टाइम इन मुम्बई, नॉक आउट, एक विलेन, काय पो चे, रोग साइड राजू, क्रीकि अली, शैतान, इस्लामिक एक्सोरिज, कालाकाण्डी, हिचकी, फन्ने खान, ताशकंद फाइल्स, बिग ब्रोदर, होस्टेज पार्ट 2, हमारी फेहरिस्त में इतनी ही फिल्में थी।

आसिफ साहब की रंगमंचीय :-
1967 में महाराष्ट्र के अमरावती में पैदाइश हुई, स्कूल से ही मंच से मुहब्बत हो चली थी, बाद में मुम्बई विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और रंगमंच को व्यवसायिक तौर पर अपना लिया था, रंगमंच पर कोशिश कामयाब होती है आसिफ न केवल भारत विदेशों तक अपने अभीनय का लोहा मनवा चुके थे,
इसी काम के आधार पर अनुराग कश्यप ने ब्लेक फ्रायडे में काम दिया था।
बसरा रंगमंच और अभीनय के विद्वानों में शुमार होते थे।
रंगमंच के विद्वानों और गुणी कलाकारों में मकबूलियत और मारूफियत थी।
आसिफ की कर्मभूमि मुम्बई ही थी और रिहाइश भी यही हो चली थी।
पहाड़ो और प्रकृति से लगाव के चलते उन्होंने हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में एक घर पहली मंजिल का किराए पर घर ले रखा था, जब भी वह मुम्बई की आपाधापी से कतराते तो सुकून की तलाश में यहां चले आए आया करते थे।
आखरी समय मे एक ब्रिटिश महिला के साथ लिव इन मे रह रहे थे, आसिफ के परिवार की कोई बड़ी जानकारी नही मिलती है, उन्होंने शादी नही की थी,
चुकी शटिंग्स अभी स्थगित दौर में चल रही है तो आसिफ अपने पसंदीदा घर धर्मशास्त्र पहुच गए थे
वह पड़ोसियों से लगातार मिलते जुलते रहे थे, 12 नवम्बर को उन्होंने अपने पालतू कुत्ते को बाहर सेर भी कराई, लेकिन पड़ोसी भी समझ नही पाए कि आसिफ तनाव या अवसाद में है।
घटना क्रम :-
तकरीबन 12.30 पर पोलिस को फोन जाता है कि एक लाश फंदे से झूल रही है,
पोलिस रूटिंग कारवाही करती है हॉस्पिटल ले जाती है
परन्तु मृत घोषित कर दिए जाते है आसिफ बसरा।
घर की तलाशी पर कोई अंतिम पत्र नही, पड़ोसियों से पूछताछ पर कोई सुराग नही।
अमरावती घर वालो को खबर फिर मरहूम का पोस्टमार्टम
कांगड़ा जिले के सुप्रिडेंट विमुक्त रंजन खुद मौके पर पहुचे थे, पोलिस पूरी मुस्तेदी से काम मे लगी हुई है
प्राथमिक पोस्टमॉर्टम में कुछ खास नही पता चला है,
पोलिस का प्रथम दर्जे में मानना है कि कोई साज़िश की बू नही आ रही है।
पाताल लोक के निर्देशक ने सफलता के बाद सभी किरदारों से निजी तौर पर फोन पर बात हुई थी लेकिन आसिफ ने लगभग 30 दिनों तक न फोन पिक किया न सन्देश का जवाब दिया तब निर्देशक को लगा कि सामान्यतः अदाकार निर्देशकों से नाराज़ होते रहते है तो वही हुवा हो।
फ़िल्म इंडस्ट्री को लेकर आसिफ के कुछ विचार थे
जिस पर उन्हें गहरी चोट लगी हुई थी
की फिल्मों में या तो स्टार्स है तो सिर्फ स्टार्स ही है कोएक्टर को भी महत्व मिलना चाहिए जो नही मिलता यह विचार उनके दोस्तों और कुछ निर्देशकों से पता चला है।
अंत मे
काम लगातार मिल रहा था , रुपयों पैसों की परेशानी भी नही थी कि अवसाद (डिप्रेशन) में जान ही दे दे ????
पोलिस मौत के सच खोजने में लगी है,,,,,,
अलविदा आसिफ बसरा,,,,,

फ़िल्म समीक्षक : इदरीस खत्री

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