बेटियाँ
बेटियाँ रिश्तों-सी पाक होती हैं
जो बुनती हैं एक शाल
अपने संबंधों के धागे से।
बेटियाँ धान-सी होती हैं
पक जाने पर जिन्हें
कट जाना होता है जड़ से अपनी
फिर रोप दिया जाता है जिन्हें
नई ज़मीन में।
बेटियाँ मंदिर की घंटियाँ होती हैं
जो बजा करती हैं
कभी पीहर तो कभी ससुराल में।
बेटियाँ पतंगें होती हैं
जो कट जाया करती हैं अपनी ही डोर से
और हो जाती हैं परायी।
बेटियाँ टेलिस्कोप-सी होती हैं
जो दिखा देती हैं– दूर की चीज़ पास ।
Author: Govind Gupta (गोविंद गुप्ता)