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पिछड़ता बॉलीवुड दौड़ता टॉलीवुड

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भारतीय सिनेमा की वैश्विक पहचान है जिसमे केवल मुम्बईया सिनेमा नही अपितु दक्षिण (तमिल तेलगू, कन्नड़, मलयालम), भोजपुरी, पंजाबी, गुजराती, सभी सिनेमा सम्मलित है
यह बात अलग है कि बॉलीवुड में अपना मुकाम बड़ा और स्थायी के साथ नाम- शौहरत ज्यादा बनाई है
भारत मे सिनेमा देखना आज भी छोटेमोटे पर्व की भांति होता है और फिल्मो को सामाजिक आईना माना गया है।
भारत मे एक इंसान के तीन धर्म होते है
पहला उसका निजी और स्थाई धर्म – जैसे हिन्दू- मुस्लिम- सिख- ईसाई, दूसरा क्रिकेट, तीसरा सिनेमा,,, इन पंक्तियों को लिखने की वजह यह है कि एक भारतीय का धर्म- क्रिकेट- और सिनेमा को लेकर समर्पण के साथ प्रभाव ही इतना ज्यादा है
खैर आज की चर्चा की बॉलीवुड क्यो पिछड़ता जा रहा है और रीजनल सिनेमा दौड़ में आगे निकल रहा है

दक्षिण भारतीय सिनेमा में
तमिल, तेलगू, कन्नड़, मलयालम फिल्मे होती हैं,,, इनमें नया साहित्य, बड़ा एक्शन, संवेदनशीलता, नए प्रयोग, फेमेली ड्रामा, स्पाय, थ्रिलर, सस्पेंस, हॉरर,
लव स्टोरी फ़िल्म के हर जॉनर में माहिर खिलाड़ी की तरह न केवल खेल रहे हैं वरन पिच कर टिके हुवे भी है। कुछ दक्षिण भारतीय फिल्मे
कल्याण समन्थ सारंग, रँगस्थलम, अर्जुन रेड्डी, बैंगलोर डेज, टेक ऑफ, 96, हैप्पी डेज, आरूही, क्षनम, लूसिया, गीता गोविन्दम, रक्सासम, गुड़ाचारी, पैली चोपुरु, बाहुबली, विसारानाई, केथी,जल्लीकट्टू यह फेहरिस्त तवील (अंतहीन) है।
दक्षिण भारत मे 15 से 20% फिल्मे मसाला फिल्मे होती है शेष फिल्मे शुद्ध रूप से कहानी और कंटेंट बेस्ड होती है या नए प्रयोग नए विषय, नई रचनात्मकता होती है।
इधर बॉलीवुड की बात करे तो सालभर में केवल 5% फिल्मे ऐसी होती है जैसे अंधाधुध, आर्टिकल 15, सहर, मॉम, बधाई हो, कागज, भेजा फ्राय, रात अकेली है, पीकू, पिंक
शेष फिल्मे मसाला फिल्मे होती हैं जो न दिल को भांति हैं न दिमाग को,
फिर नेपोटिज्म(भाई भतीजावाद) का तड़का तो अलग से है ही।
वैसे भी बॉलीवुड अब दक्षिण सिनेमा के प्रभाव में आ चला है।
क्या दक्षिण सिनेमा के दर्शक बॉलीवुड दर्शकों से ज्यदा समझ मे पक्के हो चुके है।

क्यो दक्षिण सिनेमा के रिमेक की बॉलीवुड में झड़ी लग चली है?
क्या हम यह मान ले कि बॉलीवुड के पास कंटेंट और कहानियां खत्म हो चली है?
हम यह मान ले बॉलीवुड सितारे फिल्मों पर हावी हो जाते है?
या हम यह मान ले नए कंटेंट और नए प्रयोग से बॉलीवुड कतराने लगा है?
क्या बॉलीवुड को अपडेशन की ज़रूरत है?
आज तकनीक और इंटरनेट के युग मे फूल कहि भी खिले उसकी खुशबू कहि पर भी फैल ही जाती है
वैसे बाहुबली के बाद से हिंदी सिनेमा के दर्शकों का रुझान दक्षिणी सिनेमा की तरफ बढ़ से गया है साथ ही आजकल फिल्मे एक से अनैक भाषाओं में प्रदर्शित होने लगी है
और जब दर्शकों को ज्यादा मनोरंजन कहि मिलेगा तो वह स्विच तो होंगे ही ???
बॉलीवुड की कुछ मूलभूत गलतिया जिसके कारण वह दौड़ में पिछड़ रहा है,,
जैसे नए प्रयोग न होना
स्टारडम और स्टार्स का अड़ियल रवैया,
भाईभगिजावाद हावी होना
प्रयोग से कतराना
टिकिट खिड़की के आधारित मसाला फिल्मो की भरमार,
लॉबिंग और गैंग बनाकर फ़िल्म निर्माण
बॉलीवुड में अब वो शिद्दत नही दिखती जो मुगल ए जाज़म या शोले के समय दिखी थी,
अब शायद बॉलीवुड टिकिट खिड़की के ग़ुलाम होता जा रहा है ???
यह समीक्षा जारी रहेगी…..

फ़िल्म समीक्षक :- इदरीस खत्री

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