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आखरी के आठ दिन में आरएसएस ने पलट दी बाज़ी

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आकाश विजयवर्गीय की बोई फसल गोलू के काम आ गई….

संघ व सहयोगी संगठन की मदद, भाजपा कार्यकर्ता जीत के शिल्पकार…

मोदी के राजबाड़ा आते ही गोलू पीछे, कमल आगे आ गया…

आखरी के आठ दिन में आरएसएस ने पलट दी बाज़ी, गोलू की विनम्रता ने दिखाया असर

विधानसभा 3 में कांग्रेस की हार की कल्पना तो अच्छे अच्छे राजनीति के जानकार भी नही कर रहे थे। कद्दावर नेता स्व महेश जोशी औऱ दमदार विधायक रहे अश्विन्न जोशी की ये कर्मस्थली इस चुनाव में पिंटू जोशी के आने से जीत के लिए पूरी तरह मुफ़ीद थी। पिंटू की तरुणाई औऱ सतत सक्रियता ने कांग्रेस की बांछे भी खिला रखी थी। “आकाश” नाम की चुनोती खत्म हो चुकी थी और गोलू शुक्ला के आ जाने से कांग्रेस को जीत बिल्कुल दहलीज़ पर नजर आने लगी। भाजपा में दहलीज़ तक पहुचीं जीत को चौखट पार नही करने दी और अपने परिश्रम से खींचकर अपने पाले में कर लिया। सब हतप्रभ रह गए। हार भी नजदीकी नही। लम्बी चौड़ी इस हार ने अब क्षेत्र 3 में भाजपा और आरएसएस की ताकत को स्थाई स्थापित कर दिया।

अगर शहर में कांग्रेस की हार हर किसी को आंखे फैलाकर भौचक्का होने को मजबूर कर रही है तो वो है विधानसभा 3 में पिंटू जोशी की हार। शहर में ऐसा कोई राजनीति का जानकार नही होगा, जो ये कहने की स्थिति में था कि यहां कांग्रेस हार रही है। बस एकमात्र आपका अपना पक्का इंदौरी अखबार ख़ुलासा फर्स्ट ही था जिसने नतीज़े के एक पखवाड़े पहले ही पिंटू को आगाह किया था कि ” भिया आप भी हवा में हो”। उस वक्त ख़ुलासा का ये ख़ुलासा जरूर उम्मीदवार से लेकर पार्टी तक को हजम नही हुआ होगा लेकिन हक़ीक़त वही थी जो 3 दिसंबर को नेहरू स्टेडियम में उज़ागर हुई।

 इस हार से सब कोई हतप्रभ रह गया। क्योंकि पिंटू के मुक़ाबले भाजपा की चुनोती कमजोर मानी औऱ आंकी जा रही थी। भाजपा के गोलू शुक्ला को बाहरी उम्मीदवार ही नही बताया गया बल्कि उन्हें “बाणगंगा” औऱ ” बाणेश्वरी” से जोड़कर प्रचारित भी किया गया। शुक्ला केम्प के साथ भाजपा भी, कांग्रेस की इस “सुनियोजित” रणनीति से एक वक्त सहम गई थी। कारण था शुक्ला परिवार के राजेंद्र शुक्ला का इसी विधानसभा से हार जाना। तब राजेन्द्र के लिये “बाणगंगा” औऱ “बाणेश्वरी” हार का कारण बना था। लिहाजा कांग्रेस ने यही से अपने चुनाव अभियान को न केवल शुरू किया बल्कि पूरे समय तक इस पर फोकस भी किया गया। बस ये ही बड़ी भूल कांग्रेस से हुई। वो गोलू की चुनोती को भी राजेन्द्र समझकर निपट रही थी। जबकि इस बीच “बाणगंगा” में खूब पानी बह गया और “बाणेश्वरी” भी “कारपोरेट घराना” हो गया।

3 नम्बर इलाके में “शुक्ला ब्रदर्स” का दिखाया गया ख़ौफ़ काम नही आया। न इन्दोर-उज्जैन रोड पर बेतरतीब दौड़ती बसों के वीडियो असरकारी साबित हुए। न चन्दाखोरी-गुंडागर्दी के आरोपों को बल मिल पाया। कैसे मिलता बल? गोलू को तो शहर “कावड़यात्री” के रूप में जानता था जो अपनी भारी भरकम कावड़ लेकर उस राजबाड़े तक आते थे, जो विधानसभा 3 का “मोर मुकुट” हैं। इसी “मोर मुकुट” तक चलकर देश के पंतप्रधान का रोड शो भी आया था। “विराट छवि” के मोदी का, इस “लघु विधानसभा” में आना टर्निंग पाइंट रहा। मोदी के राजबाड़ा आने के तुरंत बाद से ही जिले की इस सबसे छोटी विधानसभा 3 में गोलू शुक्ला नेपथ्य में चले गए और फ्रंट पर कमल का फूल आ गया। लोग भूल गए कि बाणगंगा लड़ रहा है या शुक्ला ब्रदर्स? बस ये याद रहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने राजबाड़ा पर आकर यानी हमारी विधानसभा में आकर देवी अहिल्या को माला पहनाई। शेष कसर आरएसएस, उसके सहयोगी संगठन, पूर्व विधायक आकाश विजयवर्गीय की मेहनत औऱ कार्यकर्ताओ ने पूरी कर दी।

ऐसा नही की पिंटू ने चुनाव कमजोरी से लड़ा। वे पूरी ताकत से मैदान में थे और जमकर पसीना भी बहाया। 5 साल पूर्व से मिले टिकट के आश्वासन के बाद से वे विधानसभा में सतत सक्रिय भी थे। जनहित के तमाम मुद्दे पर मुखर ही नही, मैदान में भी रहे। परिवार के अश्विन्न जोशी का भी साथ मिला हुआ था। ” श्रेष्ठि वर्ग” भी तन मन और धन से साथ था लेकिन “चुनिदा नजरों” से ही पूरा चुनाव देखना उनको भारी पड़ गया। अगर वे “नजरें” बढ़ा लेते तो वक्त रहते उनको वे कमियां पतां हो जाती, जो आखरी दम तक उन तक नही पहुँची। इन्ही कमियों ने पिंटू को वहां भी हरा दिया, जो इलाके स्व महेश जोशी के वक्त से कांग्रेस के पक्ष के थे। श्यामचरण शुक्ल नगर से लेकर कमाठीपुरा औऱ इमली बाजार से लेकर गाड़ी अड्डा, तक मे कांग्रेस का पिछड़ जाना या बराबरी में आ जाना इसी कड़ी का हिस्सा रहा।

शहर के मध्य हिस्से को ही समूची विधानसभा मानना भी बड़ी भुल साबित हुई। नतीजे में सपना संगीता, स्नेह नगर, अग्रवाल नगर वाला पूरा हिस्सा, स्नेह नगर से चितावद तक का इलाका छिटक गया। इस हिस्से में ऐसी बम्पर वोटिंग हुई कि मध्य शहर की पिंटू की बढ़त जमीदोंज हो गई। नतीजा ये रहा है जीत की उम्मीद से सबसे ज्यादा जिले में दमकता “दीपक” अपना आलोक फैलाने से पहले ही बुझ गया। हालांकि “हार नही मानूंगा, राह नई ठानूँगा” के जयघोष के साथ दीपक यानी पिंटू फिर मैदान में उतर गए हैं। हार जीत अपनी जगह, लेकिन ये जज्बा तारीफ़ ए क़ाबिल हैं।

इस सीट से सबक ले कांग्रेस, सीखे भाजपा से
 इस सीट से कांग्रेस ही नही, उसके कार्यकर्ताओं को भी सबक लेना चाहिए कि कैसे बाहर से आये उम्मीदवार को भी हजम कर जिताया जाता हैं। विधानसभा 3 में भाजपा हमेशा बाहर से उम्मीदवार “थोप” देती हैं। इसकी लम्बी फेहरिस्त भी है। इसका रंज भी इस विधानसभा की भाजपा को रहता है। इस बार औऱ ज्यादा था और स्थानीय उम्मीदवार पर जोर था। लेकिन फिर ऐनवक्त पर गोलू शुक्ला सामने आ गए। इस नाम के साथ भाजपा की अंदरूनी असहजता को देख कांग्रेस आत्ममुग्ध हो गई और दम्भोक्ति वाला बयान आया- गोलू के नाम से ही हम चुनाव जीत गए, बस अब फ़िक्र केवल लीड बढ़ाने की है। याद है न ये बयान? बावजूद इसके यहां की भाजपा ऐसे भिड़ी की 15 दिन में बाजी पलटकर रख दी। जबकि देखा जाए तो गोलू के पास बूथ के अंदर बैठाने के स्वयम के कार्यकर्ता भी नही थे। विधायक आकाश विजयवर्गीय ने दिन रात एक किया। दिनेश पांडे, गजानंद गावड़े, मनीष मामा, जीतू यादव जैसे सभी पार्षदों ने भी जमकर मेहनत की। ईश्वर बाहेती, बब्बी शुक्ला, सुमित मिश्रा, दीपेंद्र सिंह सोलंकी, कमल शुक्ला, दीपेश पचौरी की रणनीति औऱ शुक्ला परिवार के नोनिहालो यश, अंजनेश, रुद्राक्ष, विक्की आदि ने अंतिम समय तक ऐसा कीला लड़ाया कि चमत्कारी जीत सामने आई। दूसरी तरफ पिंटू को अपने ही पार्षदों और नेताओं का वो साथ नही मिल पाया जैसी वे उम्मीद लगाए हुए थे। टिकट के दावेदार तो एक तरह से “आरी-कटारी” ही लेकर साथ चल रहे थे। परिणाम में जिले के सबसे संभावनाशील युवा को हार का मुंह देखना पड़ा।

आरएसएस की तिवारी-जैन की जोड़ी ने किया चमत्कार
भाजपा कार्यकर्ता, पार्षदों के बाद इस जीत का शिल्पकार आरएसएस रहा। संघ ने यहां की कमान अपने तेजतर्रार पदाधिकारी पवन तिवारी को दी थी। सहयोगी बने विजय जैन, जिन्होंने सुदर्शन गुप्ता को सबसे कठिन मुक़ाबले में तब जीत दिलाई थी, जब कमलेश खंडेलवाल की चुनोती सामने आई थी। तिवारी-जेन की जोड़ी ने उन बस्ती इलाको को फोकस किया, जो कांग्रेस को भरपल्ले वोट देते थे। संघ की रणनीति ने इन इलाकों में कांग्रेस को बढ़त को थाम दिया औऱ मुकाबला बराबरी का कर लिया। इस सीट पर 12 हजार नए मतदाता जुड़े थे और 6 हजार वोट अल्पसंख्यक वर्ग के घटे थे। संघ ने इस समीकरण के मद्देनजर नए वोटर्स अपने पाले में कर एक बड़ी जीत की आधारशिला रख दी।

…जबकि देखा जाए तो गोलू के पास बूथ के अंदर बैठाने के स्वयम के कार्यकर्ता भी नही थे। विधायक आकाश विजयवर्गीय ने दिन रात एक किया। दिनेश पांडे, गजानंद गावड़े, मनीष मामा, जीतू यादव जैसे सभी पार्षदों ने भी जमकर मेहनत की। ईश्वर बाहेती, बब्बी शुक्ला, सुमित मिश्रा, दीपेंद्र सिंह सोलंकी, कमल शुक्ला, दीपेश पचौरी चन्द्रभानसिंह सोलंकी, की रणनीति औऱ शुक्ला परिवार के नोनिहालो यश, अंजनेश, रुद्राक्ष, विक्की आदि ने अंतिम समय तक ऐसा कीला लड़ाया कि चमत्कारी जीत सामने आई। दूसरी तरफ पिंटू को अपने ही पार्षदों और नेताओं का वो साथ नही मिल पाया जैसी वे उम्मीद लगाए हुए थे। टिकट के दावेदार तो एक तरह से “आरी-कटारी” ही लेकर साथ चल रहे थे। परिणाम में जिले के सबसे संभावनाशील युवा को हार का मुंह देखना पड़ा।

लेखक़ :- नितिनमोहन शर्मा

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