कलमयुग की तस्वीर
चेहरे खिले हैं कायरों के जरुर कोई वजह खास है,
षड्यंत्र के फंदे में जैसे हुनरबाज की छीन ली साँस है।
बेशर्म विधा को देखकर ताली बजा रहे हैं लोग,
अम्बर का सर झुक गया धरती भी उदास है।
सरेराह सरेआम लुट रही इंसानियत की रूह,
मानवता का रक्त पी रहे…
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