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Poets Corner

अबे 2012!

अबे 2012! तेरे जैसा साल न आये दोबारा। तूने तो सारा देश ही निपटा मारा। सबसे पहले तो छीना कुश्ती का सितारा एक्टिंग का किंग, यानि दारा सिंह। अभी दारा की याद को भूले भी नहीं थे अख़बार, तब तक हमें अलविदा कह गए राजेश खन्ना यानि पहले सुपरस्टार।…
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अगले जनम मोह़े बिटिया ना देना

माँ बहुत दर्द सह कर ... बहुत दर्द दे कर ... तुझसे कुछ कहकर में जा रही हूँ .... आज मेरी विदाई में जब सखियाँ आयेगी ..... सफेद जोड़े में देख सिसक-सिसक मर जायेंगी .. लड़की होने का ख़ुद पे फ़िर वो अफ़सोस जतायेंगी .... माँ तू उनसे इतना कह देना…
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'दामिनी' की 'अमानत'

समय चलते मोमबत्तियां, जल कर बुझ जाएँगी ... श्रद्धा में डाले पुष्प, जल हीन मुर्झा जायेंगे ... स्वर विरोध के और शांति के अपनी प्रबलता खो देंगे ... किन्तु 'निर्भयता' की जलाई अग्नि हमारे ह्रदय को प्रज्वलित करेगी ... जल हीन मुरझाये पुष्पों को…
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‘दामिनी’ की ‘अमानत’

समय चलते मोमबत्तियां, जल कर बुझ जाएँगी ... श्रद्धा में डाले पुष्प, जल हीन मुर्झा जायेंगे ... स्वर विरोध के और शांति के अपनी प्रबलता खो देंगे ... किन्तु 'निर्भयता' की जलाई अग्नि हमारे ह्रदय को प्रज्वलित करेगी ... जल हीन मुरझाये पुष्पों को…
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करती हूँ प्रतिकार तुम्हारा

मुझे दिखा दीन हीन तुम, अपना अहम बढ़ाते कुचल मसल मेरी अस्मिता, तुम स्वयं का पुरुषार्थ दर्शाते करती हूँ प्रतिकार तुम्हारा पुत्र, भ्राता,स्वामी,सखा तुम नहीं अब नाथ मेरे नही मैं अब धरा सी तुम्हे देव मान सब कुछ चुपचाप सहूँगी अब बंधन सब तोड़ मैं…
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"घर खो गया ….."

न जाने ये कब और केसे हो गया हम मकानों में चले आये और घर खो गया .... वो बात कहाँ इन आलीशान आशियानों में जो बात थी गांव के पुश्तेनी मकानों में ये जगमगाता फर्श ये रोशन दीवारें खिड़की से नज़र आते शहर के हंसीं नज़ारे हें महंगे फानूस बड़ी सी कुर्सी…
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“घर खो गया …..”

न जाने ये कब और केसे हो गया हम मकानों में चले आये और घर खो गया .... वो बात कहाँ इन आलीशान आशियानों में जो बात थी गांव के पुश्तेनी मकानों में ये जगमगाता फर्श ये रोशन दीवारें खिड़की से नज़र आते शहर के हंसीं नज़ारे हें महंगे फानूस बड़ी सी कुर्सी…
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मां मुझे डर लगता है

मां मुझे डर लगता है . . . . बहुत डर लगता है . . . . सूरज की रौशनी आग सी लगती है . . . . पानी की बुँदे भी तेजाब सी लगती हैं . . . . मां हवा में भी जहर सा घुला लगता है . . . . मां मुझे छुपा ले बहुत डर लगता है . . . . मां याद है वो काँच की…
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ऐ नदी

अपने उदगम की वेला में अप्रतिम ऊर्जा के साथ पत्थरो को तोडते हुए, और फिर पंछियों संग सुर मिला गीत गाते हुए, पहाड़ों के बीच दरख्तों, बेलों औ' चट्टानों से बतियाते, अल्हड यौवन से मदमस्त उछलती कूदती, ऐ नदी ! तुम बहती रही, बढती रही | आज भी वो सब…
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मौत से ठन गई

ठन गई! मौत से ठन गई! जूझने का मेरा इरादा न था, मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था, रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई, यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई। मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं, ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं। मैं जी भर जिया, मैं मन से…
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