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Poets Corner

दिल्ली की गुड़िया

दिल्ली की गुड़िया के नाम... सीखनी थी अभी जिसे अस्मिता की परिभाषा. उसकी अस्मिता को तार-तार करके छोड़ा है.. तन में साँसे अब चले भी तो क्या है. मन से तो उसको पूरा मार करके छोड़ा है. समझोगे क्या उसकी पीड़ा खून के भी आँसू रो के. जिस गुड़िया को…
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तुम क्यों सोचोगे

कितनी बेबस कितनी लाचार जीवन जीना है दुश्वार क्या भूलकर भी तुमने कभी पल भर को सोचा तुम क्यों सोचोगे क्योंकि तुम तो छलते आये हो युगों युगों से .... कभी सिद्दार्थ बनकर यशोधरा को रुलाया कभी लक्ष्मण बनकर उर्मिला को सताया कभी पांडव बनकर द्रौपदी…
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परीक्षा

परीक्षाओ का शुरू हो गया , नींद में खलल पड़ी है । टी .वी .,पी .सी .बंद हुए, खेल कूद सब रद्द हुए । आई इम्तहान की बेला है । मम्मी की डाट पड़ रही , पापा वक्त की कीमत ,समझा रहे है । दीदी ,भैया को,दी हिदायत, मेरी मदद ,करने को कह रहे है । रात -रात…
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इंतजार

तकती रही राह मै तेरी ,, करती रही इंतजार , मै तेरी , बीते दिन , कटे महीने , गुजर गए , अब ,जाने, कितने साल , खामोश हो गई जुबां , नैनो ने नीर सोख लिया है , कुसुम सी, जिन्दगी , अब बिरहन हो गई है , धुंधली हो गई आँखे , दिल में धूल जमी है, यादो…
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नारी तुम केवल श्रद्धा हो!

माँ हो तुम, बहन हो, प्रेयसी हो, अर्धांगिनी हो, तुमने ही जन्मा और जीना सिखाया, फिर पुरुष को तुम्हे सताने का विचार भी क्यों आया ! तुम्हारे समर्पण को मैंने कमजोरी माना, तुम्हारे त्याग को न कभी देखा ना पहचाना! कभी बातों से, कभी आँखों से, कभी…
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एक दिन का भजन कीर्तन

आज महिला दिवस है सोच रही हूँ खुद को क्या लिखूं ? मान लिखू, सम्मान लिखूं चीत्कार लिखूं , दुत्कार लिखूं सहनशील या प्यार लिखूं या फिर सवाल लिखूं ? क्यों नारी दिवस पर ही नारी की होती बखान है या सिर्फ एक दिन का भजन कीर्तन है ।। आज नारी शिक्षा से…
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बस एक ही तमन्ना है

दिखा दो कोई एक घर... जिसमे परेशानी ना हो..। खाते हो सब एक थाली मे... रोटियो मे बेईमानी ना हो.. मज़हब ना नज़र आए.. .ढूंढ लाओ एक कस्बा कोई.. मतलब ना नज़र आए... ढूंढ लाओ ऐसा जज़्बा कोई.. दे दो बस एक दोस्त... जो हर पुकार मे साथ हो.. आँधी आए या…
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क्या लाया था साथ में

जो आया वो जाएगा, दुनिया एक सराय कोई आगे चल दिया, कोई पीछे जाय। क्या लाया था साथ में, क्या जाएगा साथ आना खाली हाथ है, जाना खाली हाथ। सुख में सारे यार हैं, दु:ख में साथी चार इधर प्राण निकले उधर, हुई चिता तैयार। क्या लाया था साथ में क्या जाएगा…
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एक छोटा सा बच्चा अपनी स्वर्गीय माँ से कहता हुआ

कहाँ जा रही हो छोड़ कर राह मेँ मुझे इस तरह माँ अभी तक तो मैँने चलना भी नही सीखा अरे मुरझाया हुआ फूल हूँ मै तो अभी तक तो मैँने खिलना भी नही सीखा खेल खेल मेँ गिर जाऊ तो कौन साहारा देगा मुझे मैने तो अभी उछलना भी नही सीखा चल दी हो तुम कहाँ…
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अब गोविंद ना आयंगे

द्रोपदी शस्त्र उठा लो, अब गोविंद ना आयंगे छोडो मेहँदी खडक संभालो, खुद ही अपना चीर बचा लो द्यूत बिछाये बैठे शकुनि, मस्तक सब बिक जायेंगे सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आयेंगे | कब तक आस लगाओगी तुम, बिक़े हुए अखबारों से, कैसी रक्षा…
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