बसंत रुत आई
मेड़ों की पीली सरसों
खेतों की भीगी माटी
हरी हरी अमराइयाँ
आई ,,, आई ,,, बसंत रुत आई
पत्तों से छन छनकर
आती उमंगों की घाम
पिघलती हुई अनुभूतियाँ
आई ,,, आई ,,, बसंत रुत आई
मधुप की मकरंद चाह
फूलों की हवा संग ठिठोली
कोयलिया की शब्दलहरियां
आई ,,,…
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