सिर्फ तुम थे
दर्पण से आज
बातें की बेहिसाब
तुम्हारे प्रतिबिम्ब को
मुस्काने दीं बेहिसाब
प्रतीक्षा भरे दृगों में
तुम ही थे .... सिर्फ तुम ही थे
आंजन की सलाई से
भरा सावन के मेघों सा
चाहत का विश्वास
भोर की चटकती उम्मीद में
लालिमा में , तबस्सुम में
तुम ही थे…
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