Indore Dil Se
News & Infotainment Web Channel

कफन

864

कफ़न ओढ़ कर मैं चला बिना चलाये पाँव
लोग कांधे बदलते रहे ले जाने को श्मशान

क्या क्या नही कमाया करके श्रम दिन और रात
कफ़न मिला बिना जेब का जाना पड़ा खाली हाथ

जो सारी उम्र कफ़न पहनने से हिचकते रहे
मरने पर बड़ी मजबूरी में कफनान्तर्गत रहे है

मेरा कफ़न तेरे कफ़न से ज्यादा सफेद क्यों
मेने वह सब किया जो आप कर नही सके है

कितनी नफरत है उनके दिल मे मेरे लिये,
मरघट ले जाने के लिए कफ़न पहनवा रहे है

कफ़न किसी जिन्दे के नसीब में नही होता
इसे पहनने के लिए जनाब मरना भी पड़ता है

तुम मुझे क्या खाकर कफ़न पहनावोगे
हम तो पहले से ही चलती फिरती लाश है

जिंदा था तब मुझे देखते ही मुह मोड़ लेते थे, अब कफ़न हटा हटा कर मुह देख रहे है

रचयिता : त्रिपुरारि जी शर्मा,इंदोर

Leave A Reply

Your email address will not be published.

Contact to Listing Owner

Captcha Code