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Poet’s Corner
A collection of Poems. . . .
“घर खो गया …..”
न जाने ये कब और केसे हो गया
हम मकानों में चले आये और घर खो गया ....
वो बात कहाँ
इन आलीशान आशियानों में
जो बात थी
गांव के पुश्तेनी मकानों में
ये जगमगाता फर्श
ये रोशन दीवारें
खिड़की से नज़र आते
शहर के हंसीं नज़ारे
हें महंगे फानूस
बड़ी सी कुर्सी…
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"घर खो गया ….."
न जाने ये कब और केसे हो गया
हम मकानों में चले आये और घर खो गया ....
वो बात कहाँ
इन आलीशान आशियानों में
जो बात थी
गांव के पुश्तेनी मकानों में
ये जगमगाता फर्श
ये रोशन दीवारें
खिड़की से नज़र आते
शहर के हंसीं नज़ारे
हें महंगे फानूस
बड़ी सी कुर्सी…
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मां मुझे डर लगता है
मां मुझे डर लगता है . . . . बहुत डर लगता है . . . .
सूरज की रौशनी आग सी लगती है . . . .
पानी की बुँदे भी तेजाब सी लगती हैं . . . .
मां हवा में भी जहर सा घुला लगता है . . . .
मां मुझे छुपा ले बहुत डर लगता है . . . .
मां याद है वो काँच की…
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ऐ नदी
अपने उदगम की वेला में
अप्रतिम ऊर्जा के साथ
पत्थरो को तोडते हुए,
और फिर
पंछियों संग सुर मिला
गीत गाते हुए,
पहाड़ों के बीच
दरख्तों, बेलों औ'
चट्टानों से बतियाते,
अल्हड यौवन से मदमस्त
उछलती कूदती,
ऐ नदी !
तुम बहती रही, बढती रही |
आज भी वो सब…
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मौत से ठन गई
ठन गई!
मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।
मैं जी भर जिया, मैं मन से…
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इबारत ए इश्क
अन्फ़स (सुन्दर) ख्वाबों के मेरे शहज़ादे
सज़दे में तेरे मोती बिखराए रात भर
मेरी स्याह तन्हाई ...
सिसकियाँ सरगम सुनाती रहीं रातभर
हकीक़त ए हाल(सच्चाई ) जान मुस्काए चंदा कमबख्त
सितारों के कारवां की निगाहे रहम (करुण दृष्टि) पर
जीती रही रात भर...…
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ससुराल
एक लडकी ससुराल चली गई,
कल की लडकी आज बहु बन गई.
कल तक मौज करती लडकी,
अब ससुराल की सेवा करती बन गई.
कल तक तो ड्रेस और जीन्स पहनती लडकी,
आज साडी पहनती सीख गई.
पियर मेँ जैसे बहती नदी,
आज ससुराल की नीर बन गई.
रोज मजे से पैसे खर्च करती लडकी,
आज…
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श्री सच्चिदानंद सदगुरु साईनाथ महाराज
जबसे बढ़ा सांई से रिश्ता दुनियां छूटी जाय
हम आऐ सांई के द्वारे धरती कहीं भी जाय
चहूं ओर तूफ़ान के धारे,मैली हवा वीरान किनारे
जीवन नैया सांई सहारे फिर भी चलती जाय
जबसे बढ़ा सांई से रिश्ता दुनिया छूटी जाय
नाम सिमरले जब तक दम है,बोझ ज़ियादा वक्त…
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“मौत” की सोच
कभी एक पल के लिए ठहर ज़रा "मौत" के बारे में सोच,
और खींच मत अपना ही "अंत" अपने दोनों हाथों से अपनी ही ओर,
बन कठोर इतना की हो नहीं लालच की तुझ में ज़रा भी लोच !!
कभी एक पल के लिए ठहर ज़रा "मौत" के बारे में सोच,
अब भूल भी जा अपना अभिमान,…
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"मौत" की सोच
कभी एक पल के लिए ठहर ज़रा "मौत" के बारे में सोच,
और खींच मत अपना ही "अंत" अपने दोनों हाथों से अपनी ही ओर,
बन कठोर इतना की हो नहीं लालच की तुझ में ज़रा भी लोच !!
कभी एक पल के लिए ठहर ज़रा "मौत" के बारे में सोच,
अब भूल भी जा अपना अभिमान,…
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