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Poet’s Corner
A collection of Poems. . . .
एक दिन का भजन कीर्तन
आज महिला दिवस है
सोच रही हूँ खुद को क्या लिखूं ?
मान लिखू, सम्मान लिखूं
चीत्कार लिखूं , दुत्कार लिखूं
सहनशील या प्यार लिखूं
या फिर सवाल लिखूं ?
क्यों नारी दिवस पर ही
नारी की होती बखान है
या सिर्फ एक दिन का भजन कीर्तन है ।।
आज नारी शिक्षा से…
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बस एक ही तमन्ना है
दिखा दो कोई एक घर... जिसमे परेशानी ना हो..।
खाते हो सब एक थाली मे... रोटियो मे बेईमानी ना हो..
मज़हब ना नज़र आए.. .ढूंढ लाओ एक कस्बा कोई..
मतलब ना नज़र आए... ढूंढ लाओ ऐसा जज़्बा कोई..
दे दो बस एक दोस्त... जो हर पुकार मे साथ हो..
आँधी आए या…
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क्या लाया था साथ में
जो आया वो जाएगा, दुनिया एक सराय
कोई आगे चल दिया, कोई पीछे जाय।
क्या लाया था साथ में, क्या जाएगा साथ
आना खाली हाथ है, जाना खाली हाथ।
सुख में सारे यार हैं, दु:ख में साथी चार
इधर प्राण निकले उधर, हुई चिता तैयार।
क्या लाया था साथ में क्या जाएगा…
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एक छोटा सा बच्चा अपनी स्वर्गीय माँ से कहता हुआ
कहाँ जा रही हो छोड़ कर राह मेँ मुझे इस तरह माँ
अभी तक तो मैँने चलना भी नही सीखा
अरे मुरझाया हुआ फूल हूँ मै तो
अभी तक तो मैँने खिलना भी नही सीखा
खेल खेल मेँ गिर जाऊ तो कौन साहारा देगा मुझे
मैने तो अभी उछलना भी नही सीखा
चल दी हो तुम कहाँ…
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अब गोविंद ना आयंगे
द्रोपदी शस्त्र उठा लो, अब गोविंद ना आयंगे
छोडो मेहँदी खडक संभालो, खुद ही अपना चीर बचा लो
द्यूत बिछाये बैठे शकुनि, मस्तक सब बिक जायेंगे
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आयेंगे |
कब तक आस लगाओगी तुम, बिक़े हुए अखबारों से,
कैसी रक्षा…
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इज़हारे इश्क़
मेरे दिल के ज़ज़्बे की तुम्हे, कुछ खबर तो है.
मेरी बातो का भी तुमपर, कोई असर तो है..
माना कि ज़ुबा से मैं ज़रा, काम कम लेता हूँ.
पर इज़हारे इश्क़ करने को, झुकी नज़र तो है..
यूँ तो अंदाज़ आपके, हर बात बयाँ करते हैं.
जवाब की फिर भी,…
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वतन की है पुकार : फिर सुभाष चाहिए
भगत सिंह सुखदेव राजगुरु, और आज़ाद चाहिए।
वतन की है पुकार ये, अब फिर सुभाष चाहिए॥
जल रहे हैं लोग बस, दिल मे ही नफ़रत लिए।
भाई है प्यासा ख़ून का, भाई से अदावत लिए॥
मज़हब के नाम पे, ये खूनी खेल रोकना होगा।
मजहब का सियासत से, ये मेल रोकना…
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दूरीयाँ
तुम दूर रह के कहते हो ,
अब कोई दूरीयाँ कहाँ !
कितने हैं हम मजबूर ,
तुम्हे मजबूरीयाँ कहाँ !
क्या क्या करें जतन ,
के ये दिल चाहे ना जहां .
अपना लुटा के चैन लो ,
बैठे हैं हम यहाँ .
तुम दूर रह के कहते हो ,
अब कोई दूरीयाँ कहाँ ...
चाहत से…
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हमसफ़र
सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो
इधर उधर कई मंज़िल हैं चल सको तो चलो
बने बनाये हैं साँचे जो ढल सको तो चलो
किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो
यहाँ किसी को…
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एक हरी खाकी वर्दी की चीख
मैं नहीं जानता ;क्या कहते है मेरे देश के लोग ,
क्यूंकि मेरे लिए कोई नहीं जाता इंडिया गेट , कैंडल लिए
क्या लिखते हैं अखबार , क्या चीखते है टीवी के लोग;
क्यूंकि मानसिक रूप से विकसित लोग बहस नहीं करते ,मेरे लिए ,
वर्दियों से राशन तक , गोलियों…
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