Browsing Category
Poet’s Corner
A collection of Poems. . . .
वह ‘लड़की’ याद आती है
उम्र की इस दहलीज पर
जब देखकर हमें आईना भी बनाता है अपना मुँह,
कुछ शरमाकर , कुछ इठलाकर
मुसकराती-सी वह लड़की याद आती है ....
जब हम भी थे कुछ उसी की तरह
उसी की उम्र में...उसी की तरह सकुचाकर मुसकराने वाले.
तब हम ऐसे थे..., जैसे कोई पंछी
देखकर…
Read More...
Read More...
फिर याद आ गए तुम
तारों के झिलमिलाते आँगन में
अम्बर के अंतहीन ह्रदय में अंकित
पूर्णिमा का चाँद देखते ही
एक बार फिर
याद आ गए तुम ----
युगल पंछियों का
नीड़ की ओर बढ़ना
देख धरा की प्यास
श्यामल पावसों का उमड़ना
मुखरित हुआ अनूठा एहसास
प्रतीक्षारत साँझ में
एक बार फिर…
Read More...
Read More...
मेरे अश्क़
मेरे अश्क़ !!
बातूनी हैं बहुत
तन्हाइयों में
सखियों सी
बेहिसाब
बातें करते हैं----
मेरे अश्क़ !!
हताशा का
रुख मोड़
अपनेपन से
मुस्कुराकर
मिलते हैं----
मेरे अश्क़ !!
पारदर्शी
मोती के
वलय में
खुशियों के
सतरंगी रंग
भरते हैं-----
मेरे अश्क़ !!
ख़्वाबों…
Read More...
Read More...
फूल की फरयाद
हो आदमी खुदा के तो मान भी जाओ
यू बाग़ की डाली को विधवा न बनाओ
एक फूल हूँ मैं मुझको बिलकुल न सताओ
शम्मा हूँ मोहब्बत की यू मुझको जलाओ
मैं नूर हूँ खुदा का सबको ये बताओ
पैगाम हूँ खुदा का ये भूल न जाओ
हो आदमी...........
मेरा जहाँ में काम है…
Read More...
Read More...
लम्हों
गुजर गये लम्हे धीरे धीरे
और वे सब यादो में 'बदलते' रहे।
हम तेरे साथ की ख़ुशी में भूल गये
की 'लम्हे' कभी नही होते सदा के लिए
'यादे' ही साथ रहती है अंत तक ।
लम्हों की खुशीयां तो क्षणिक होती है
यादे ही तो है जो उन लम्हों को
बार बार 'जीवन' देती…
Read More...
Read More...
सिर्फ तुम थे
दर्पण से आज
बातें की बेहिसाब
तुम्हारे प्रतिबिम्ब को
मुस्काने दीं बेहिसाब
प्रतीक्षा भरे दृगों में
तुम ही थे .... सिर्फ तुम ही थे
आंजन की सलाई से
भरा सावन के मेघों सा
चाहत का विश्वास
भोर की चटकती उम्मीद में
लालिमा में , तबस्सुम में
तुम ही थे…
Read More...
Read More...
बसंत रुत आई
मेड़ों की पीली सरसों
खेतों की भीगी माटी
हरी हरी अमराइयाँ
आई ,,, आई ,,, बसंत रुत आई
पत्तों से छन छनकर
आती उमंगों की घाम
पिघलती हुई अनुभूतियाँ
आई ,,, आई ,,, बसंत रुत आई
मधुप की मकरंद चाह
फूलों की हवा संग ठिठोली
कोयलिया की शब्दलहरियां
आई ,,,…
Read More...
Read More...
विवाह – vivah
विवाह
एक उत्सव जो लाता है जीवन मे उत्साह
कुछ दिनों पहले शुरू हो जाती है तैयारियाँ
धर्मशाला , टेन्ट-हाउस , कैटरींग जैसी जिम्मेदारीयाँ
नये-नये कपड़े , नये-नये आभूषण
घर-धर्मशाला मे lighting और Decoration
जोरदार तरीके से किया जाता है बारातियों…
Read More...
Read More...
मैं आज़ाद कहाँ हुई?
माँ के आँचल से उतरकर बस धरा पर पैर रखा ही था ,
लगा कि मैं आज़ाद हो गयी
पिता कि उंगली थामे थामे , अचानक एक दिन अकेले कदम चल पड़े ,
लगा कि मैं आज़ाद हो गयी
पायल की रून-झुन , छुन-छुन गुंजाती आँगन में दौड़ने लगी ,
लगा कि मैं आज़ाद हो गयी
घर का आँगन…
Read More...
Read More...
कर रक्खा
मेरे सपनों ने मुझे सुला कर रक्खा ...
मेरे अपनों ने मुझे जगा कर रक्खा ...
यूँ तो मुस्कान रही चेहरे पर हमेशा,
पर उदासी ने गला दबा कर रक्खा ...
जीने के लिए चलना बहुत ज़रूरी था,
पर मन को शीत कब्र बना कर रक्खा ...
कोई टूट कर मुझे चाहे मुमकिन…
Read More...
Read More...