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Poet’s Corner

A collection of Poems. . . .

पत्रकार है…

तू जानती है न मां, तेरा बेटा पत्रकार है...मां तू नाराज न होना इस दिवाली मैं नहीं आ पाउंगातेरी मिठाई मैं नहीं खा पाउंगादिवाली है तुझे खुश दिखना होगाशुभ लाभ तुझे खुद लिखना होगातू जानती है यह पूरे देश का त्योहार हैऔर यह भी मां कि तेरा बेटा
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मॉं

मॉं है ईश्वर की इबादत मॉं है प्रेम की ईबारत मॉं है मन में श्रद्धा का भाव मॉं है धूप में गुलमोहर की छॉंव मॉं है अपनत्व की सेज मॉं है सूरज का तेज मॉं है ममता का सागर मॉं है खुशियों की गागर मॉं है शीतल सी चॉंदनी मॉं है सुरो की रागिनी मॉं है…
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दिल से गुस्ताखी

दिल से गुस्ताख़ी कुछ यूँ हुई, वो नाराज़ रहे मोहब्बत में शायरा कुछ यूँ बनी, वो खामोश रहे मुन्तज़िर निगाहें मेरी कुछ यूँ झुकी, वो बेबस रहे मैं दिन-ब-दिन दीवानी कुछ यूँ बनी, वो तस्सवुर करते रहे दिल को कश्मकश हुई, क्या उन्हें भी मोहब्बत हुई?…
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कलमयुग की तस्वीर

चेहरे खिले हैं कायरों के जरुर कोई वजह खास है, षड्यंत्र के फंदे में जैसे हुनरबाज की छीन ली साँस है। बेशर्म विधा को देखकर ताली बजा रहे हैं लोग, अम्बर का सर झुक गया धरती भी उदास है। सरेराह सरेआम लुट रही इंसानियत की रूह, मानवता का रक्त पी रहे…
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Light Life at 4am

Darker the souls, Deeper the thoughts. Darker the night it shows more blue sides. And when death speaks the language of mind, it becomes way too beautiful to feel the essence of dark deep pages. The story will take you in a different world,…
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“जानता हूँ मैं यह सब कि…”

जानता हूँ मैं यह सब कि है आपको मुझसे बहुत-सी अपेक्षाएँ .... किन्तु जानते यह नहीं कि मैं हूँ अकिंचन .... उलझा हुआ स्वयं अपने ही में निर्भर हूँ पूर्णतः उस जगत-नियंता पर ..., इस पर-निर्भरता की भूमि पर होकर खड़े अब बताओ आप स्वयं-ही क्या दे सकता…
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बैठो न तुम सामने मेरे

बैठो न तुम सामने मेरे बिखरा के अपनी काली- उलझी ज़ुल्फें, कलम मचल-मचल उठती है लिखने के लिए कुछ फ़लसफ़ा अनकहा ज़िन्दगी के खाली बेतरतीब पन्नों पर. बैठो न तुम सामने.... बैठो न तुम सामने मेरी ज़िन्दगी के सूखे दरख़्त के, सूखी टहनियों पर बैठी उदास कोयल…
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स्त्री हूँ मैं

द्वैत अद्वैत क्या है ना जानती थी रिश्तों की पूरक हूँ सप्तपदी के वचनो को समझ सकी थी इतना ही आधे भरे हो तुम आधे को भरना है मुझे नही जानती थी रिसते अधूरेपन को भरने की परीक्षा दे रही हूँ ... आशाओं का अंकुरण करती छलती रही अपना ही मन रिश्तों के…
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मालवो म्हारो

मालवो म्हारो है घणो प्यारो | डग -डग नीर पग-पग रोटी | या वात वइगी अब खोटी | यां नी है मुरखां को टोटो | यां को खांपो भी है मगज में मोटो | थ्री -इडियट सनिमो आयो यां का खांपा, मूरख अणे टेपा के भायो | कदी कालिदास जिन्दो वेतो , तो ऊ घणो खुस वेतो…
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होली

नेह, प्रेम, अपनत्व ले, आया होली पर्व । हृदय-ह्रदय से मिल रहे, रंग कर रहे गर्व ।। अंतर्मन में हर्ष है, मन में है उल्लास । शोक रहे न शेष अब, बिखरे केवल हास ।। संस्कार पलनें लगें, गूजें ऐसे गीत । प्रीति-प्यार के बंध में, बंधना हमको मीत ।।…
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