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Poet’s Corner

A collection of Poems. . . .

गैस सिलिंडर

जनता से बोली... डायन महंगाई... सुन रे भारत माता की संतान जादू काला पढ़ दिया है अब सब होंगे बर्बाद सब होंगे बरबाद अब न कुछ पिए न खाए फैलाउंगी ऐसा बवंडर बिन दवा कैप्सूल... ढीली करूंगी... जमी गैस जो पेट के अंदर... आगे नतमस्तक है आज सभी छोटे…
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किशोर मन की पीड़ा

ले लीजिए एक बार में, जो चाहे मेरा इम्तिहा. मुझसे बार-बार की ये, आज़माइश नहीं होती. दिल के ज़ज़्बे, मेरी आँखो मे पढ़कर देख लो. सरेबाज़ार मुझसे इनकी, नुमाइश नहीं होती.ठोकर खाकर की सीखता है, इन्सा खड़ा होना. मुझसे हर बार की बर्दाश्त, समझाइश…
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रूठो मत

रूठो मत... बटवारा कर लो, रंगीन टुकड़े चूडियो के तुम रख लो, सूखे सुर्ख गुलाब मै रख लेती हूँ ! रेत से चुने शंख सीपी तुम ले लो, ठंडी हवाओं की सिहरन मै ले लेती हूँ ! तुम अपनी तस्वीर वापिस ले लो, मै तुम्हारी यादें लिए लेती हूँ ! सारी खुशियाँ…
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तुम्हारे हैं

वेदना के इन स्वरों में... कुछ स्वर तुम्हारे हैं सिन्धु के प्रचंड वेग में.. कुछ लहरे तुम्हारी हैं जेठ का सा ताप बहुत है.. शाप कुछ तुम्हारे हैं किया सृजन श्रृंगार बहुत.. नेह मोती तुम्हारे ही हैं नीरवता के भयावह सन्नाटे में.. कुछ स्वप्न…
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पद

वो कौन सा है पद, जिसे देता ये जहाँ सम्मान । वो कौन सा है पद, जो करता है देशों का निर्माण वो कौन सा है पद, जो बनाता है इंसान को इंसान । वो कौन सा है पद, जिसे करते है सभी प्रणाम । वो कौन सा है पद , जिकसी छाया में मिलता ज्ञान । वो कौन सा है…
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रविवार

काश.. आज फिर रविवार होता... सो जाती फिर से... मुह ढांप के... करवट भी न बदलती... फिर तो... सोती रहती तान के... खोयी रहती... मै तो... निद्रा के आगोश में... पावों को क्यूँ मैला करूंगी देखूंगी ख्वाब मजेदार से... बाहर तो है घुप्प अँधेरा... भीतर…
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बिटिया की पीर

लौटकर तो आयेंगे यहीं, चाहकर भी न जा पाएंगे कहीं खूंटे से बंधी गाय की तरह, चरवाहे की भेड़ बकरी की तरह सांझ ढलते ही आयेंगे यही, चाहकर भी न जा पाएंगे कहीं कभी माँ की दुलारती बाहें, बाबा की स्नेहसिक्त आँखे केवल भर सकेंगी इन नयनो में नीर इस…
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Bacchapann ke woh din…

बच्चपन के वो दिन... कितने सुहाने थे... न किसी का डर था... न झूठे बहाने थे... खेलना ही ज़िन्दगी बन चूका था, सिर्फ मस्ती और मोज के दिन बिताने थे...!! बारिश में भीगने का भी अलग अंदाज़ होता था... तब आसू न छुपाते थे... चाहे जीत हो या हो हार... सब…
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माँ

संबंध नहीं हैं माँ केवल संपर्क नहीं है, आदर्श है जीवन का केवल संबोधन नहीं है, जन्‍मदात्री है वो मात्र इंसान नहीं है, व्‍यक्तित्‍व बनाती है, केवल पहचान नहीं है, ममता की प्रतिमा है केवल नारी का एक रूप नहीं है, स्‍नेह की छाया है केवल कठोरता की…
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बेटियाँ

बेटियाँ रिश्तों-सी पाक होती हैं जो बुनती हैं एक शाल अपने संबंधों के धागे से। बेटियाँ धान-सी होती हैं पक जाने पर जिन्हें कट जाना होता है जड़ से अपनी फिर रोप दिया जाता है जिन्हें नई ज़मीन में। बेटियाँ मंदिर की घंटियाँ होती हैं जो बजा करती…
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