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शादी ,शादी और सिर्फ शादी

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हमारे देश में शादी जीवन का सबसे अहम और दिलचस्प पड़ाव होता है। बच्चे के जन्म से ही उसकी शादी की प्लानिंग शुरू हो जाती है। अनुभवी बुजुर्ग बच्चों की हरकते और सूरत देखकर ही बता देते है कि,ये शादी के बाद ऐसा ऐसा करेगा/करेगी । लड़की सुंदर हुई तो कहेंगे छोरी तो भोत सुंदर है इसे अच्छा घर वर मिलेगा । काली या नकटी हुई तो कहेंगे कैसी छोरी पैदा हुई है फलाने के घर इसके ब्याव में भोत परेशानी आएगी । कोई 2-3 साल का लड़का अगर किसी पड़ौस की लड़की की मार खाकर भी उसके आगे पीछे घूमता है तो कहेंगे देखो अभी से छोरी के पीछे घूम रहा है , पक्का जोरू का गुलाम निकलेगा। शादी के नाम से बच्चों को डराया भी बहुत जाता है। किशोर लड़को को कहेंगे देख पढ़ लिख जा ,नी तो तेरी शादी नहीं होगी और लड़की को पराए घर जाना है बहू-बेटी के लच्छन सीख जा।

शादी का लड्डू जो खाये पछताए ,जो ना खाये वो भी पछताए ये कहावत जिसने भी बनाई है , बिलकुल 100 टका सही बनाई है ।वैसे शादी में पछताने की कोई उम्र नहीं होती पहले दिन से लेकर आखिरी दिन तक पछताया जा सकता है । आप लाख कुंडलियाँ मिलन कर लो या प्रेम विवाह कर लो। लेकिन ये तय है कि हर व्यक्ति शादी के नाम पर कभी न कभी पछताता तो है। कुँवारे शादी शुदा को देखकर आहें भरते है और शादी शुदा कुंवारों से ईर्ष्या करते है । कुछ जोड़े सच्चाई स्वीकार करके अलग हो जाते है,कुछ गाँठे लगा-लगा कर जीवन की डोर को बांधकर रखते है । कुछ एक ही छत के नीचे अजनबी से जीते है। कुछ बच्चों की खातिर एक साथ रहते है तो कुछ लोक लाज से । कुछ के लिए शादी बरबादी है, तो कुछ की कैमिस्ट्रि अच्छी भी होती है। कुछ ऊपरी दिखावा अच्छा कर लेते है। कोई अपने साथी के सामने आत्मसमर्पण करके हथियार डाल देते है तो कुछ हर वक़्त हिंदुस्तान-पाकिस्तान की तरह तैनात रहते है। कुछ घर वाली- बाहर वाली अलग अलग रख लेते है ।

कहते है जोड़िया ऊपर से बनकर आती है। लेकिन मुझे तो इसमे कोई सच्चाई नजर नहीं आती अगर ऐसा होता तो शादी वाले दिन भी दूल्हे दुल्हन की सहेलियों और बहनो पर तांक झांक करते नहीं पाये जाते, नहीं शादी शुदा लोग भाभीजी घर पर है कहते हुये पड़ोसियों के किचन में घुसपैठ करते, ना ही कोई छज्जे ,बालकनी,और चौराहे पर चोरी छुपे या खुले आम आँख सेकते पाये जाते। अगर कोई अपने जोड़े से संतुष्ट होता तो ऑफिस में किसी नई परी के एंट्री मारते ही केवल कुंवारों दिल की ही घंटिया बजती, लेकिन ऐसा तो है ही नहीं शादी शुदा तो कुंवारों से भी ज्यादा इन्टरेस्ट लेते है महिलाओं में । गाड़ी ,साड़ी ,मोबाइल और जीवन साथी है ही ऐसी वस्तुएं जिनको लेने के बाद पछतावा होता ही है ,सोचते है थोड़े दिन रुक जाते तो शायद और अच्छी चीज मिल जाती । कुल मिलकर शादी नाम की परंपरा बहुत ही उलझी हुई है ,जो कि कुंवारों को ललचाती है और शादीशुदा को फिर से बेचलर बनने के लिए उकसाती है।

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सुषमा दुबे

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