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अहंकार करना उचित नही

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प्राचीन काल की बात है, शेषनाग का एक महा बलवान् पुत्र था। उसका नाम मणिनाग था। उसने भक्ति भाव से भगवान् शंकर की उपासना कर गरुड़ से अभय होने का वरदान माँगा। भगवान् शंकर ने कहा- ‘ठीक है, गरुड् से तुम निर्भीक हो जाओ।

तब वह नाग गरुड् से निर्भय हो क्षीरसागर भगवान् विष्णु जहाँ निवास करते हैं, वहाँ क्षीर सागर के समीप विचरण करने लगा। उसकी इस प्रकार की धृष्टता देखकर गरुड़ को बड़ा क्रोध आया और उसने मणिनाग को पकड़ कर गरुड़ पाश में बाँधकर अपने घर में बन्द कर दिया।

इधर जब कई दिन तक मणिनाग भगवान् शंकर के दर्शन को नहीं आया, तो नन्दी ने भगवान् शंकर से कहा ।

‘हे देवेश! मणिनाग इस समय नहीं आ रहा है, अवश्य ही उसे गरुड़ ने खा लिया होगा या बाँध लिया होगा। यदि ऐसा न होता तो वह क्यों न आता?”

तब नन्दी की बात सुनकर देवाधिदेव भगवान् शिव ने कहा–’नन्दिन्! मणिनाग गरुड़ के घर पर बँधा हुआ है, इसलिये शीघ्र ही तुम भगवान् विष्णु के पास जाओ और उनकी स्तुति करो, साथ ही स्वयं मेरी ओर से कहकर गरुड़ द्वारा बाँधे गये उस सर्प को ले आओ।’

अपने स्वामी भगवान् शिव का वचन सुनकर नन्दी ने लक्ष्मीपति भगवान विष्णु के पास जाकर उनकी स्तुति की और उनसे भगवान् शंकर का सन्देश कहा।

भगवान् शंकर का सन्देश और नन्दी की स्तुति सुनकर नारायण विष्णु बड़े प्रसन्न हुए, उन्होंने गरुड़ से कहा- ‘हे वैनतेय! तुम मेरे कहने से मणिनाग को बन्धन मुक्त कर नन्दी को सौंप दो।’ यह सुनकर गरुड़ क्रोधित हो, अहंकार में आकर बोला कि स्वामी अपने भृत्यों को पुरस्कार देते हैं और एक आप हैं, जो मेरे द्वारा प्राप्त वस्तु को भी हर लेते हैं। हे नारायण मेरे बल से ही आप दैत्यों पर विजय प्राप्त करते हैं और स्वयं ‘मैं महाबलवान् हूं, ऐसी डींग हाँकते हैं।

गरुड़ की अहंकारपूर्ण बातें सुनकर भगवान् विष्णु ने हँसते हुए कहा-‘पक्षिराज! तुम सचमुच मुझे पीठ पर ढोते-ढोते दुर्बल हो गये हो। हे खगश्रेष्ठ! तुम्हारे बल से ही मैं सब असुरों को जीतता हूँ, जीतूंगा भी। अच्छा, तुम मेरी इस कनिष्ठि का अँगुली का भार वहन करो।’ यह कहकर भगवान् विष्णु ने अपनी कनिष्ठिका अँगुली गरुड़ के सिर पर रख दी। अँगुली के रखते ही गरुड़ का सिर दबकर कोख में घुस गया और कोख भी दोनों पैरोंके बीच घुस गयी, उसके समस्त अंग चूर-चूर हो गये।

तब वह अत्यन्त लज्जित, दीन, व्यथा से कराहता हुआ हाथ जोड़कर विनीत भाव से बोला, हे जगन्नाथ! मुझ अपराधी भृत्य की रक्षा करो- रक्षा करो। प्रभो! सम्पूर्ण लोकों को धारण करने वाले तो आप ही हैं, हे पुत्रवत्सल ! हे जगन्माता! मुझ दीन-दुखी बालक की रक्षा करो’ कहकर भगवान् की प्रार्थना की।

यह देखकर करुणामयी भगवती लक्ष्मी ने भगवान् जनार्दन से प्रार्थना की कि प्रभू! गरुड़ आपका सेवक है, उसका अपराध क्षमा कर उसकी रक्षा करें।

भगवान् ने भी गरुड़ को विनीत और अहंकार रहित देखकर कहा कि गरुड़! अब तुम भगवान् शंकर के पास जाओ, उनकी कृपा दृष्टि से ही तुम स्वस्थ हो सकोगे। गरुड़ ने प्रभु की आज्ञा स्वीकार कर नन्दी और मणिनाग के साथ गर्वरहित हो मन्दगति से भगवान् शंकर के दर्शन के लिये प्रस्थान किया। उनका गर्व दूर हो चुका था। भगवान् शंकर का दर्शनकर और उनके कहने से गौतमी गंगा में स्नानकर वे पुनः वज्रसदृश देहवाले और वेगवान् हो गये।

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