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कृत्रिम बुद्दिमता का इतिहास

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पिछले लेख मे हमने जाना था कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता या एआई क्या है अब हम इसके इतिहास पर एक नजर डालते है। सबसे पहले इंटेलिजेंट रोबोट और कृत्रिम प्राणियों को प्राचीन ग्रीक स्क्रिप्चर में दर्शाया गया था। अरस्तू का सिओलोगिज्म का विकास और इसका तार्किक प्रयोग मानव जाति के लिए अपनी बुद्धिमत्ता को समझने की खोज में एक महत्वपूर्ण क्षण था। वस्तुत: मानव सभ्यता के इतिहास मे कृत्रिम बुद्धिमता की जड़े काफी लम्बी और गहरी हैं।

मनुष्य का सदा से यही प्रयास रहा है कि मानव जाति की सुविधा के लिए वो इस तरह के आविष्कार करता रहे जिनका उपयोग कर वो कम से कम श्रम कर अपना जीवन आनंद पूर्वक गुजार सके। पहिये से लेकर हवाई जहाज तक का सफर मानव मस्तिष्क की क्षमताओं का एक नन्हा सबूत भर है। पहले मनुष्य ने यांत्रिक आविष्कार किए जो मानव के कार्यो को आसान करते थे जैसे लीवर, हथौड़ा, चाकू, नाव आदि फिर उसने स्वचालित मशीनों जैसे इंजन, आटा चक्की, ग्राइंडर, केलकुलेटर आदि का निर्माण किया लेकिन यह सब मशीनें केवल एक पूर्व निर्धारित कार्य को ही करने मे सक्षम थी और ये किसी भी तरह की निर्णय लेने की क्षमता से विहीन थी। तब मनुष्य ने सोचा कि ऐसी मशीन बनाई जाय जो मानव की तरह सोच सके और परिस्थिती अनुरूप निर्णय ले सके। एआई इस धारणा पर आधारित है कि मानव विचार की प्रक्रिया को यंत्रीकृत किया जा सकता है।
कृत्रिम बुद्धिमता की और कदम बढ़ाते हुए हमने पहले कंप्यूटर का निर्माण किया जो कुछ हद तक मानव मस्तिष्क की तरह कार्य करता है, जो 2 मे 2 जोड़कर जवाब चार निकाल सकता है।

निर्णय लेने की क्षमता के उपयोग के बारे मे बात करते हुए मुझे राम-रावण युद्ध का एक प्रसंग याद आ रहा है। मेघनाद के शक्ति बाण प्रहार से लक्ष्मण जी के मूर्छित हो जाने पर सुषेण वैद्य बताते हैं कि सुबह होने से पहले ही द्रोणागिरी पर्वत से संजीवनी बूटी लानी होगी। तब हनुमान जी की क्षमताओ का आकलन कर उनको इस काम के लिए चुना जाता है। सुषेण जी उनको संजीवनी बूटी की पहचान बताकर रवाना करते है। वहाँ पहुँचकर समान प्रकार की कई जड़ी बूटियो को देखकर हनुमान जी भ्रमित हो जाते है और उनका मस्तिष्क किसी एक बूटी को संजीवनी के रूप मे चुन कर ले जाने से इंकार कर देता है। इस विकट स्थिति मे जब लक्ष्मणजी का जीवन दांव पर लगा था और हनुमान संजीवनी की पहचान नही कर पा रहे थे तब आप समझ सकते है कि हनुमान कितने भीषण मानसिक और भावनात्मक दबाव मे होंगे।

इस भीषण परिस्थिति मे उनके पास क्या विकल्प थे, पहला विकल्प वापस लौट जाना और सही औषधि की पहचान के लिये सुषेण को साथ लेकर आना लेकिन उनके मस्तिष्क ने गणना कर बताया कि अब इतना समय उपलब्ध नही है। दूसरा विकल्प था कि संजीवनी समान लगाने वाले सभी पेड़ पौधो को उखाड़ कर ले जाये ताकि सुषेण उनमें से संजीवनी छाँट सकें। लेकिन उनके मस्तिष्क ने इस विकल्प को भी नकार दिया क्योंकि इसमें इस बात का खतरा था कि एक भी पौधा काम का ना निकले और अनमोल जीवनदायी अन्य औषधियो के नष्ट होने का भी खतरा अलग था। तब उनके दिमाग ने यह निर्णय लिया कि पूरा पहाड़ ही उठाकर ले जाया जाय जिससे समय रहते संजीवनी की उपलब्धतता बगैर किसी नुकसान या खतरे के सुनिश्चित हो। हम सब इस बात के गवाह है कि विपरीत परिस्थितियो मे हनुमान जी के मस्तिष्क द्वारा लिए गए इस निर्णय ने ना सिर्फ लक्ष्मण जी को जीवन दान दिया बल्कि इतिहास बदल कर रख दिया।

एआई के विकास के सम्बन्ध में कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं पर एक त्वरित नज़र :-
1943 – वारेन मैककुल्फ और वाल्टर पिट्स ने “ए लॉजिकल कैलकुलस ऑफ़ आइडियास इमैन्ट इन नर्वस एक्टिविटी” के शीर्षक से तंत्रिका नेटवर्क के निर्माण के लिए पहला गणित मॉडल प्रस्तावित किया। 
1949 –  डोनाल्ड हेब्ब ने “द ऑर्गनाइजेशन ऑफ बिहेवियर: ए न्यूरोप्सिकलोलॉजिकल थ्योरी”,  में इस सिद्धांत को रखा कि तंत्रिका मार्ग अनुभवों से निर्मित होते हैं, जिससे न्यूरॉन्स के बीच संबंध और अधिक मजबूत हो जाते हैं।
1950 – एलन ट्यूरिंग ने  “कम्प्यूटिंग मशीनरी और इंटेलिजेंस” प्रकाशित किया जिसे ट्यूरिंग टेस्ट के रूप में जाना जाता है। हार्वर्ड से स्नातक मार्विन मिनस्की और डीन एडमंड्स ने एस ए एन आर सी नामक पहले न्यूरल नेटवर्क कंप्यूटर का निर्माण किया, क्लाउड शैनन ने “प्रोग्रामिंग कंप्यूटर फॉर प्लेइंग शतरंज” को प्रकाशित किया। इसाक असिमोव ने “रोबोटिक्स के तीन नियम” को प्रकाशित किया।
1952 – आर्थर सैमुअल ने चेकर्स खेलने के लिए एक स्व-शिक्षण कार्यक्रम को विकसित किया।
1954 – आईबीएम ने स्वचालित रूप से 60 रूसी वाक्यों का अंग्रेजी में सफल अनुवाद किया।
1956 – जॉन मैकार्थी ने आर्टिफिशीयल इंटेलिजेंस पर आधारित “डार्टमाउथ समर रिसर्च प्रोजेक्ट” सम्मेलन मे एआई के दायरे और लक्ष्यों को परिभाषित किया, जहां से कृत्रिम बुद्दिमत्ता की उत्पत्ती मानी गई। इसी वर्ष एलेन न्यूवेल और हर्बर्ट साइमन ने लॉजिक थियोरिस्ट पर पहला तर्क कार्यक्रम आयोजित किया।
1958 – जॉन मैकार्थी, ने प्रोग्रामिंग भाषा लिस्प को विकसित किया और “प्रोग्राम विथ कॉमन सेंस” शोध पेपर प्रकाशित किया।
1959 – एलेन न्यूवेल, हर्बर्ट साइमन और जे.सी. शॉ ने ‘जनरल प्रॉब्लम सॉल्वर’ विकसित किया ।
1963 – जॉन मैकार्थी ने स्टैनफोर्ड में कृत्रिम बुद्दिमत्ता प्र्योगशाला की शुरुआत की।
1969 – डेनड्रल प्रोजेक्ट के तहत स्टेंफोर्ड मे सबसे पहला एक्सपर्ट सिस्टम विकसित किया गया।
1972 – अलसे कोलमेरॉयर ने तार्किक प्रोग्रामिंग भाषा प्रोलाग को विकसीत किया।
1980 – डिजिटल इक्युप्मेंट कार्पोरेशन ने  आर-1 जिसे एक्सकोन के रूप में भी जाना जाता है, नामक पहला सफल वाणिज्यिक प्रणाली विशेषज्ञ सिस्टम विकसित किया। 
1982 – जापान के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और उद्योग मंत्रालय ने महत्वाकांक्षी पाँचवीं पीढ़ी के कंप्यूटर सिस्टम परियोजना की शुरुआत की।
1983 – जापान को जवाब देने के लिए अमेरिकी सरकार ने उन्नत कंप्यूटिंग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता में अनुसंधान करने हेतु डिफेंस एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी  द्वारा  वित्त पोषित रणनीतिक कम्प्यूटिंग पहल को शुरू किया।
1987-1993 – जैसे-जैसे कंप्यूटिंग तकनीक में सुधार हुआ, उसके साथ-साथ सस्ता विकल्प उभरता गया और 1987 में लिस्प मशीन बाजार ध्वस्त हो गया।
1991 – अमेरिकी सेना खाड़ी युद्ध के दौरान, एक स्वचालित लॉजिस्टिक्स प्लानिंग और शेड्यूलिंग टूल डार्ट को तैनात करती है।
1997 – आईबीएम के डीप ब्लू ने विश्व शतरंज चैंपियन गैरी कास्परोव को हराया।
2005 – स्वचालित -ड्राइविंग कार स्टेनली, ग्रैंड चैलेंज जीतती है। अमेरिकी सेना ने बोस्टन डायनेमिक के “बिग डॉग” और इरोबोट के “पैकबोट” जैसे स्वायत्त रोबोटों में निवेश करना शुरू कर दिया।
2008 – गूगल आवाज को पहचानने में सफलता को प्राप्त करता है और इसे ऐप के रूप मे मोबाईल पर उलब्ध करवाता है।
2014 – गूगल ड्राइविंग टेस्ट को पास करने के लिए पहली सेल्फ ड्राइविंग कार को बनाता है।
2016 – गूगल डीप माईंड के अल्फ़ा-गो ने विश्व चैंपियन ली सेडोल को हराया।
2019 – आर्टिफिशल इंटेलिजेंस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन ओपन एआई ने अपना रोबोटिक हाथ प्रस्तुत किया जो रूबिक्स क्यूब पजल को सफलता पूर्वक हल कर लेता है।
वर्तमान मे कृत्रिम बुद्दिमत्ता पर शोध निरंतर जारी है और एआई आधारित उत्पादो जैसे अलेक्सा आदि बाजार मे उपलब्ध है और नित नए आविष्कार भी देखने को मिल रहे है। 
इस प्रकार हमने देखा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता का इतिहास पुरातन काल से शुरू हुआ था। निष्णात विद्वानो और इन्ही शास्त्रीय दार्शनिकों द्वारा बुद्धि या चेतना से संपन्न कृत्रिम प्राणियों और मिथकों की रचना कर आधुनिक एआई के बीज बोये गए थे। उन्होने मानव सोच की प्रक्रिया को प्रतीकों के यांत्रिक हेरफेर के रूप में वर्णित करने का अथक प्रयास किया था। उनके इन्ही प्रयासो का वास्तविक परिणाम 1940 के दशक में प्रोग्राम करने योग्य डिजिटल कंप्यूटर के आविष्कार के रूप मे सामने आया, जो गणितीय तर्क के निचोड़  पर आधारित एक मशीन है। इस उपकरण और इसके पीछे के विचारों ने वैज्ञानिकों को इलेक्ट्रॉनिक मस्तिष्क के निर्माण की संभावना पर गंभीरता से चर्चा शुरू करने के लिए प्रेरित किया था जो आज वास्तविकता बन चुकी है।
लेखक :- राजकुमार जैन

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