रंग… अब बिदा भये
बासन्ती बयारों के संग आये रंग, फ़ागुण में छाए और जमकर बरसे
अगले बरस फिर लौटकर आने का वादा कर छोड़ गए अपनी रंगत
चौक-चौबारों, गली-मोहल्लों में छोड़ गए अपने निशान, देह पर छोड़ी छाप
घर-आँगन, मन आँगन में अक्स छोड़ गए रंग
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