सब ग्लानि से भरे थे….!
अलविदा उमेश भाई, ये स्वार्थी ज़माना तुम्हारा था भी नहीं
नम आंखों और कांपते हाथों से तुम्हारे शव को कांधे पर उठाते वक्त इंसान ही नहीं, आसमान का आंसू बहाना और श्मशान में अग्नि का तुम्हारी देह को छूते वक्त कांप जाना, यह सामान्य क्रिया!-->!-->!-->!-->!-->…
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