मेरे लिए 24 साल देश के लिए खेलना अहम: सचिन
अपने करियर को विराम देने का यह सबसे सही समय था। मुझे अपने करियर में कहीं कोई अफसोस नहीं है। मैंने सही वक्त पर क्रिकेट को अलविदा कहने का फैसला किया। मेरे लिए यह बहुत ही मजेदार रहा। क्रिकेट हमेशा मेरे लिए आक्सीजन की तरह रही। मैंने अपने जीवन के 40 साल में से 30 साल केवल क्रिकेट खेली। यानि मेरे जीवन का 75 फीसदी हिस्सा क्रिकेट से ही जुड़ा रहा। मेरा क्रिकेट के साथ जुड़ाव कहीं न कहीं बना रहेगा। आगे मैं क्या करना चाहूंगा इसके लिए मुझे अभी समय लगेगा। रिटायर हुए अभी 24 घंटे ही हुए है। आराम करने के लिए 24 दिन तो मिलने ही चाहिए। शरीर अब साथ नहीं देता, मेरा शरीर अब क्रिकेट के लिहाज से मेरा साथ नहीं देता। पहले जब मैं ट्रेनिंग में उतरता था तो सब कुछ स्वाभाविक रूप से अपने आप होता था लेकिन अब ट्रेनिंग के लिहाज से मुझे प्रयास करना पड़ता था। यानी क्रिकेट के लिहाज से मेरा शरीर थक गया था।
मैं अपना भारत रत्न देश की सभी मांओं को समर्पित करता हूं। मां अपने बच्चे को बहुत प्यार करती है। यह बात हम पहले महसूस नहीं कर पाते लेकिन एक समय के बाद पता लगता है कि हमारी मांओं ने हमारे लिए कितना त्याग किया है। राव के साथ भारत रत्न मिलना बड़ा सम्मान, मेरे लिए यह बड़े सम्मान की बात है कि मुझे देश के महान वैज्ञानिक सी एन आर राव के साथ भारत रत्न सम्मान मिलेगा। राव ने देश के लिए बहुत काम किए हैं। मुझे खेलते हुए तो दुनिया ने देखा है लेकिन वह चुपचाप अपना काम करते रहे। मैं उन्हें भारत रत्न के लिए बधाई देता हूं।
मैं टीम का हिस्सा रहूं या न रहूं लेकिन हमेशा टीम की जीत की कामना करता हूं। चाहे देश किसी भी खेल में हिस्सा ले मेरी हमेशा यह दुआ रहेगी कि हमारे खिलाड़ी उन खेलों में जीतें। खिलाड़ियों के लिए देश हमेशा सर्वोपरि रहना चाहिए। ऐसा नहीं है कि मैंने संन्यास ले लिया है तो मैं क्रिकेट से पूरी तरह अलग हो जाऊंगा। मैं कहीं न कहीं क्रिकेट से जुड़ा रहूंगा और युवाओं को प्रेरित करता रहूंगा। संन्यास से पहले भी मैंने अंडर-19 और रणजी टीमों के खिलाड़ियों के साथ काफी वक्त गुजारा था और मुझे इन खिलाडियों के साथ वाकई मजा आया था। मैं युवा पीढ़ी को जरूर प्रेरित करना चाहूंगा।
ए 22 साल तक लंबा इंतजार करना पड़ा। विश्वकप जीतना मेरे लिए खास पल रहे। कल का दिन भी बहुत विशेष था। मैं नहीं जानता कि मैं इसके लिए क्या कहूं। मैं इसके लिए सिर्फ बड़ा थैंक्यू कहना चाहता हूं। मेरे लिए 2003 का विश्वकप नहीं जीत पाना सबसे बड़ी निराशा रही। हम फाइनल तक बहुत अच्छा खेले थे और विश्वकप जीत सकते थे। लेकिन फाइनल में ऑस्ट्रेलिया से हार जाना बहुत निराशाजनक रहा।
टीम इंडिया के युवा खिलाड़ियों के साथ ड्रेसिंग रूम साझा करना बड़ा ही दिलचस्प अनुभव रहा। इस टीम में कई खिलाड़ी ऐसे हैं जो मेरे पदार्पण करने के बाद पैदा हुए। जैसे भुवनेश्वर कुमार। मैं जब भी ड्रेसिंगरूम में घुसता था तो मजाक में उनसे कहता था कि गुड मार्निंग सर कहो। लेकिन ड्रेसिंगरूम में सभी खिलाड़ी हमेशा एक टीम का हिस्सा होते हैं। हर खिलाड़ी को हमेशा अपने अंदर सीखने की ललक जगाई रखनी चाहिए। अच्छा छात्र वही है जो हमेशा सीखने की कोशिश जारी रखता है। मैंने भी अपने करियर में हमेशा यही कोशिश रखी। जितना आप सीखेंगे उतना ही आप हासिल करेंगे।