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प्यार आया

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सुप्त अभिलाषाओं को
नेहिल स्पर्श से जगाया
शुष्क डालियों में…
नवजीवन का सुमन खिलाया
भीगी पलकों के अश्कों को
तुम्हारे एहसासों की तप्त साँसों ने सुखाया
उलझी लटों… अल्कों को
तुम्हारी उंगलिओं ने हौले से सुलझाया
प्यार का रस पीकर उपवन भी हर्षाया

कुदरत ने मानो… आशा का मकरंद बरसाया
तभी शायद मुझे तुम पर इतना प्यार आया…

Author: Jyotsna Saxena (ज्योत्सना सक्सेना)

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