वास्तु में सूर्य का महत्त्व
सूर्य, वास्तु शास्त्र को प्रभावित करता है इसलिए जरूरी है कि सूर्य के अनुसार ही हम भवन निर्माण करें तथा अपनी दिनचर्या भी सूर्य के अनुसार ही निर्धारित करें।किसी भी मकान में रहने वाले प्राणी के लिए सूर्य का ताप व वायु दोनों महत्वपूर्ण हैं। जिस घर में सूर्य की किरणें और हवा का प्रवेश न हो, वह घर शुभ नहीं होता है इसलिए यह आवश्यक है कि घर का निर्माण इस प्रकार कराया जाए ताकि जीवन व स्वास्थ्य के ये दोनों मूलभूत तत्व आपको आसानी से मिलते रहें।
जिन घरों में सूर्य के प्रकाश के स्थान पर विद्युत का प्रकाश और प्राकृतिक हवा के स्थान पर पंखे व कूलर का प्रयोग किया जाता है, उन घरों में रहने वाले प्राणी अक्सर बीमार रहते हैं।
स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ अक्सर दिखती हैं, जैसे दमा, एलर्जी, नेत्र रोग आदि। अतः स्वास्थ्य एवं भवन की सुरक्षा के लिए सूर्य प्रकाश तथा वायु संचरण की पर्याप्त मौजूदगी आवश्यक है। सूर्य-किरणों के सेवन से अनेक रोगों से छुटकारा मिलता है।
जिस भूखंड की लंबाई अधिक तथा चौड़ाई कम हो, समकोण वाली उस भूमि को आयताकार भू-खंड (प्लॉट) कहते हैं। इस प्रकार की भूमि सर्वसिद्धि दायक होती है। ‘स्तिाराद् द्विगुणं गेहं गृहस्वामिविनाशनम्’ (विश्वकर्मा प्रकाश 2/109)- चौड़ाई से दुगनी या उससे अधिक लंबाई की आयताकार लंबा मकान ‘सूर्यवेधी’ और उत्तर से दक्षिण की ओर लंबा मकान ‘चंद्रवेधी’ होता है। चंद्रवेधी मकान धन-समृद्धिदायक है, किंतु जल-संग्रह की दृष्टि से सूर्यवेधी शुभ होता है, चंद्रवेधी मकान में पानी की समस्या रहती है।
ब्रह्ममुहूर्त काल में सूर्य उत्तर पूर्वी भाग में रहता है। यह समय योग-ध्यान, भजन-पूजन और चिंतन-मनन का है। ये क्रियाएं सफलता पूर्वक सम्पन्न हों, इस हेतु मकान के उत्तर पूर्व की दिशा में खिड़की या दरवाजा अवश्य होना चाहिए। जिससे हमें अरुणोदय का लाभ मिल सके।
प्रातः 6 से 9 बजे तक सूर्य पूर्व दिशा में रहता है, इसलिए घर का पूर्वी भाग अधिक खुला रखना चाहिए। जिससे सूर्य की रोशनी अधिक कमरे में आ सके। तभी हम सूर्य की सकारात्मक ऊर्जा का लाभ उठा पाऐंगे।
गृहनिर्माण आरंभ और गृह प्रवेश के समय विभिन्न देवताओं के रूप में सूर्यदेव का ही पूजन होता है ताकि प्राण ऊर्जा देने वाले आरोग्य के देवता सूर्य का सर्वाधिक लाभ मिल सके। सूर्य रश्मियों की जीवनदायिनी प्राणऊर्जा का भरपूर लाभ उठाने के लिए वास्तु शास्त्र में पूर्व दिशा की प्रधानता को स्वीकार किया गया है। गृहारंभ मुहूर्त से गृह प्रवेश तक सूर्य का प्रधानता से विचार किया जाता है।
गृहारंभ और सौरमास :- गृहारंभ के मुहूर्त में चंद्रमासों की अपेक्षा सौरमास अधिक महत्वपूर्ण, विशेषतः नींव खोदते समय सूर्य संक्रांति विचारणीय है। पूर्व कालामृत का कथन है- गृहारंभ में स्थिर व चर राशियों में सूर्य रहे तो गृहस्वामी के लिए धनवर्द्धक होता है। जबकि द्विस्वभाव (3, 6, 9, 12) राशि गत सूर्य मरणप्रद होता है। अतः मेष, वृष, कर्क, सिंह, तुला, वृश्चिक, मकर और कुंभ राशियों के सूर्य में गृहारंभ करना शुभ रहता है। मिथुन, कन्या, धनु और मीन राशि के सूर्य में गृह निर्माण प्रारंभ नहीं करना चाहिए।
विभिन्न सौरमासों में गृहारंभ का फल देवऋषि नारद ने इस प्रकार बताया है—–
मेष मास – शुभ,
वृष मास – धन वृद्धि?
मिथुन मास – मृत्यु
कर्क मास – शुभ,
सिंह मास – सेवक वृद्धि,
कन्या मास – रोग,
तुला मास – सुख,
वृश्चिक मास – धनवृद्धि,
धनु मास – बहुत हानि,
मकर – धन आगम,
कुंभ – लाभ,
मीनमास में गृहारंभ करने से गृहस्वामी को रोग तथा भय उत्पन्न होता है।
सौरमासों और चंद्रमासों में जहां फल का विरोध दिखाई दे वहां सौरमास का ग्रहण और चंद्रमास का त्याग करना चाहिए क्योंकि चंद्रमास गौण है।
मकान की नीवं खोदने के लिए सूर्य जिस राशि में हो उसके अनुसार राहु या सर्प के मुख, मध्य और पुच्छ का ज्ञान करते हैं। सूर्य की राशि जिस दिशा में हो उसी दिशा में, उस सौरमास राहु रहता है। जैसा कि कहा गया है- ”यद्राशिगोऽर्कः खलु तद्दिशायां, राहुः सदा तिष्ठति मासि मासि।”
यदि सिंह, कन्या, तुला राशि में सूर्य हो तो राहु का मुख ईशान कोण में और पुच्छ नैत्य कोण में होगी और आग्नेय कोण खाली रहेगा। अतः उक्त राशियों के सूर्य में इस खाली दिशा (राहु पृष्ठीय कोण) से खातारंभ या नींव खनन प्रारंभ करना चाहिए।
वृश्चिक, धनु, मकर राशि के सूर्य में राहु मुख वायव्य कोण में होने से ईशान कोण खाली रहता है। कुंभ, मीन, मेष राशि के सूर्य में राहु मुख नैत्य कोण में होने से वायव्य कोण खाली रहेगा। वृष, मिथुन, कर्क राशि के सूर्य में राहु का मुख आग्नेय कोण में होने से नैत्य दिशा खाली रहेगी। उक्त सौर मासों में इस खाली दिशा (कोण) से ही नींव खोदना शुरु करना चाहिए।
अब एक प्रश्न उठता है कि हम किसी खाली कोण में गड्ढ़ा या नींव खनन प्रारंभ करने के बाद किस दिशा में खोदते हुए आगे बढ़ें? वास्तु पुरुष या सर्प का भ्रमण वामावर्त्त होता है। इसके विपरीत क्रम से- बाएं से दाएं/दक्षिणावर्त्त/क्लोक वाइज नीवं की खुदाई करनी चाहिए। यथा आग्नेय कोण से खुदाई प्रारंभ करें तो दक्षिण दिशा से जाते हुए नैत्य कोण की ओर आगे बढ़ें।
विश्वकर्मा प्रकाश में बताया गया है- ‘ईशानतः सर्पति कालसर्पो विहाय सृष्टिं गणयेद् विदिक्षु। शेषस्य वास्तोर्मुखमध्य -पुछंत्रयं परित्यज्यखनेच्चतुर्थम्॥’ वास्तु रूपी सर्प का मुख, मध्य और पुच्छ जिस दिशा में स्थित हो उन तीनों दिशाओं को छोड़कर चौथी में नींव खनन आरंभ करना चाहिए। इसे हम निम्न तालिका के मध्य से आसानी से समझ सकते हैं।
शिलान्यास :—- गृहारंभ हेतु नींव खात चक्रम और वास्तुकालसर्प दिशा चक्र में प्रदर्शित की गई सूर्य की राशियां और राहु पृष्ठीय कोण नींव खनन के साथ-साथ शिलान्यास करने, बुनियाद भरने हेतु, प्रथम चौकार अखण्ड पत्थर रखने हेतु, खम्भे (स्तंभ) पिलर बनाने हेतु इन्ही राशियों व कोणों का विचार करना चाहिए। जो क्रम नींव खोदने का लिखा गया था वही प्रदक्षिण क्रम नींव भरने का है।
आजकल मकान आदि बनाने हेतु आर.सी.सी. के पिलर प्लॉट के विभिन्न भागों में बना दिये जाते हैं। ध्यान रखें, यदि कोई पिलर राहु मुख की दिशा में पड़ रहा हो तो फिलहाल उसे छोड़ दें।
सूर्य के राशि परिवर्तन के बाद ही उसे बनाएं तो उत्तम रहेगा। कतिपय वास्तु विदों का मानना है कि सर्व प्रथम शिलान्यास आग्नेय दिशा में करना चाहिए।
1- सूर्योदय से पहले रात्रि 3 से सुबह 6 बजे का समय ब्रह्म मुहूर्त होता है। इस समय सूर्य घर के उत्तर-पूर्वी भाग में होता है। यह समय चिंतन-मनन व अध्ययन के लिए बेहतर होता है।
2- सुबह 6 से 9 बजे तक सूर्य घर के पूर्वी हिस्से में रहता है इसीलिए घर ऐसा बनाएं कि सूर्य की पर्याप्त रौशनी घर में आ सके।
3- प्रात: 9 से दोपहर 12 बजे तक सूर्य घर के दक्षिण-पूर्व में होता है। यह समय भोजन पकाने के लिए उत्तम है। रसोई घर व स्नानघर गीले होते हैं। ये ऐसी जगह होने चाहिए, जहां सूर्य की रोशनी मिले, तभी वे सुखे और स्वास्थ्यकर हो सकते हैं।
4- दोपहर 12 से 3 बजे तक विश्रांति काल(आराम का समय) होता है। सूर्य अब दक्षिण में होता है, अत: शयन कक्ष इसी दिशा में बनाना चाहिए।
5- दोपहर 3 से सायं 6 बजे तक अध्ययन और कार्य का समय होता है और सूर्य दक्षिण-पश्चिम भाग में होता है। अत: यह स्थान अध्ययन कक्ष या पुस्तकालय के लिए उत्तम है।
6- सायं 6 से रात 9 तक का समय खाने, बैठने और पढऩे का होता है इसलिए घर का पश्चिमी कोना भोजन या बैठक कक्ष के लिए उत्तम होता है।
7- सायं 9 से मध्य रात्रि के समय सूर्य घर के उत्तर-पश्चिम में होता है। यह स्थान शयन कक्ष के लिए भी उपयोगी है।
8- मध्य रात्रि से तड़के 3 बजे तक सूर्य घर के उत्तरी भाग में होता है। यह समय अत्यंत गोपनीय होता है यह दिशा व समय की।ती वस्तुओं या जेवरात आदि को रखने के लिए उत्तम है।
पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री
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