सवा सौ साल पहले पांव पेटी थी पियानो समान
जो वाद्य देखे सुने नहीं, उन्हें सब देख सकें यह अवसर जुटाया है गौतम काले ने
अाज शास्त्रीय संगीत की महफिल में जो हारमोनियम हाथ से बजाया जाता है एक सदी पहले इसे पांव पेटी नाम से जाना जाता था । पियानो के आकार वाली इस पांव पेटी में नीचे पेडल लगे रहते हैं जिन्हें निरंतर दबाने से धम्मन (हवा का दबाव) पैदा होती थी और की बोर्ड पर सरपट दौड़ती अंगुलियों से स्वरलहरी माधुर्य घोलने लगती थी। ऐसे बेजोड़ लुप्तप्राय वाद्य यंत्रों से संगीत रसिकों को रूबरू कराने का दुरूह कार्य किया है सुपरिचित गायक गौतम-अदिति काले ने। प्रीतमलाल दुआ सभागृह के तल और पहली मंजिल के हॉलमें ये सारे वाद्य यंत्र देखे जा सकते हैं। इन पुराने वाद्य यंत्रों के साथ दर्शक सेल्फी लेना भी नहीं भूलते।
गौतम काले पिछले आठ सालों से संगीत गुरुकुल के माध्यम से गायकों की नई पौध तैयार कर रहे हैं। वे खुद भी उम्दा गायक हैं, लेकिन उनका यह प्रयास इसलिए अनूठा है कि इंदौर ही नहीं मध्य भारत क्षेत्र में ऐसी पहल पहले नहीं हुई। आप गायक हैं तो गायकी से जुड़ा कोई प्रसंग करने से हटकर वाद्य यंत्र नुमाइश का यह आयडिया कैसे दिमाग में आया? उनका जवाब था संगीत बिना सुर कहां पूरा होता है, तो गायक होकर यह पहल मेरी स्वर यात्रा का ही एक हिस्सा है। रही बात यह आयडिया कैसे आया तो आगरा (यूपी) के संगीत समारोह में मुझे भी आमंत्रित किया गया था। वहां मुझ से पहले बुजुर्ग संगीतकार ने मयूरी वीणा वादन किया। मयूर के आकार की वीणा में मोरपंख लगे थे, यह मुझे अद्भुत लगा। लौटते में अदिति के साथ चर्चा करते रहे कि ऐसे जाने कितने वाद्ययंत्र हैं जो हमें और हमसे सीखने आने वाले बच्चों, संगीत रसिकों को पता ही नहीं है। ऐसा क्या करें कि आज की पीढ़ी को वह सब देखने को मिले, बस इसी छटपटाहट का नतीजा है पुराने वाद्य यंत्रों की यह प्रदर्शनी ।
इस ‘गूंज’ प्रदर्शनी में वीणावादक निरंजन हलधर, उज्जैन के विवेक बंसोड़ (हारमोनियम) आदि कलाकारों का सहयोग न मिला होता तो यह सपना पूरा नहीं हो पाता। जैसे विश्वमोहन भट्ट जी ने मोहन वीणा इजाद की है उसी तरह हमारे इंदौर के ही निरंजन हलधरजी ने रंजन वीणा इजाद की है। वह और उनसे प्राप्त विचित्र वीणा, सरस्वती वीणा (जैसी मां सरस्वती के चित्र में नजर आती है), मेटल, लकड़ी और चमड़े से बनी त्रिवेणी वीणा, चिन्मय विंचुरकर से प्राप्त सरोद, शीबू कुरूप (आयशर) से प्राप्त मृदंगम,२२श्रुति हारमोनियम, मुंह से फूंक मारकर बजाया जाने वाला पाइप हारमोनियम(विवेक बंसोड़) सचिन बड़ोदिया (अशोका म्यूजिक) से मंजीरे, ढोल, खोल, बांसुरी, शंख अन्य वाद्ययंत्र जुटाए हैं।
तीन साल की उम्र से मंच पर गा रहे गौतम उत्साहित हैं कि पहले दिन से ही इस नुमाइश को देखने ( समापन १० सित) स्कूली बच्चे, संगीत रसिकों की खूब आवाजाही है। अदिति और गौतम को इस बात की खुशी है कि ये लोग हर वाद्ययंत्र के संबंध में जिज्ञासा भी जाहिर करते है। हम यही तो चाहते हैं, इसी तरह तो गीत-संगीत को समझने वाला नया वर्ग तैयार होगा। मेरे इस सुझाव पर कि प्रदर्शनी को अन्य शहरों में लगाने-विस्तार देने के लिए राज्य सरकार और संगीत नाटक अकादमी दिल्ली से संपर्क करना चाहिए, गौतम कहते हैं सहयोग तो बेहद जरूरी है। फिर भी मेरी यह कोशिश है कि एक वाहन में सारे वाद्य यंत्र व्यवस्थित रख कर इस चलित वाहन को विभिन्न स्कूलों, शहरों में ले जाएं ताकि अधिकाधिक लोग शास्त्रीय संगीत की धरोहर से वाकिफ हो सकें।
इंदौर के उस्ताद अमीर खां घराने की रूद्र वीणा नहीं मिल पाई
उन्हें इस बात का अफसोस है कि तमाम प्रयासों के बाद भी रूद्र वीणा नहीं जुटा पाए । इंदौर के उस्ताद अमीर खां जिनके नाम से संगीत घराना चलता है उनका और बाबू खां साहब का प्रिय वाद्य रूद्र वीणा रहा है। कोशिश तो खूब की कहीं से रूद्र वीणा भी मिल जाए लेकिन संभव नहीं हो सका।