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लाचार माँ

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” खून की कमी से रोज मरती, बेबस लाचार माँ ”

माँ की दवाई का खर्चा, उसे मज़बूरी लगता है
उसे सिगरेट का धुंआ, जरुरी लगता है ||

फिजूल में रबड़ता , दोस्तों के साथ इधर-उधर
बगल के कमरे में, माँ से मिलना , मीलों की दुरी लगता है ||

वो घंटों लगा रहता है, फेसबुक पे अजनबियों से बतियाने में
अब माँ का हाल जानना, उसे चोरी लगता है ||

खून की कमी से रोज मरती, बेबस लाचार माँ
वो दोस्तों के लिए, शराब की बोतल, पूरी रखता है ||

वो बड़ी कार में घूमता है , लोग उसे रहीस कहते है
पर बड़े मकान में , माँ के लिए जगह थोड़ी रखता है ||

माँ के चरण देखे , एक अरसा बीता उसका …
अब उसे बीवी का दर, श्रद्धा सबुरी लगता है ||

माँ की दवाई का खर्चा, उसे मज़बूरी लगता है
उसे सिगरेट का धुंआ, जरुरी लगता है ||

Author: Govind Gupta (गोविंद गुप्ता)

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