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प्रिये कान्हा

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नभ का श्यामल वर्ण था
कान्हा की तरह…
धरती का रंग था धानी
चूनर ओढ़े राधा की तरह
झुका हुआ नीलगगन
ओस से भीगी धरा
बरसते मेघ लरजती देह
चूमने को व्यग्र आकाश
सितारों जड़ी विभावरी
उठ गया ज्यों घूंघट
शर्म हया से पगा
अरुणिम सा सुर्ख सूरज
पलकों को वो बंद किये
अधरों से मदिरा पिए
सुन बंसी की तान
प्रिये कान्हा की वो बावरी…

Author: Jyotsna Saxena (ज्योत्सना सक्सेना)

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