तुम्हारे ख़त मुझे बहुत अच्छे लगते हैं…
तुम्हारे ख़त मुझे बहुत अच्छे लगते हैं
क्यूंकि
तुम्हारी तहरीर का
हर इक लफ्ज़
डूबा होता है
जज़्बात के समंदर में
और मैं
जज़्बात की इस खुनक (ठंडक ) को
उतार लेना चाहती हूं
अपनी रूह की गहराई में
क्यूंकि
मेरी रूह भी प्यासी है
बिल्कुल मेरी तरह
और ये प्यास
दिनों या बरसों की नहीं
बल्कि सदियों की है
तुम्हारे ख़त मुझे बहुत अच्छे लगते हैं
क्यूंकि
तुम्हारी तहरीर का
हर इक लफ्ज़
अया होता है
उम्मीद की सुनहरी किरनों से
और मैं
इन किरनों को अपने आंचल में समेटे
चलती रहती हूं
उम्र की उस रहगुज़र पर
जो हालात की तारीकियों से दूर
बहुत दूर जाती है
सच !
तुम्हारे ख़त मुझे बहुत अच्छे लगते हैं…
Author: Firdaus Khan’s (फ़िरदौस ख़ान)