क्यूँ मै भर चली
पलकों की कोर में..नैनों के छोर में..
अटका हुआ है..पारदर्शी एक बबूला..
अनमोल मोती..सतरंगी एक ख्वाब.
समेटे हूँ…बिखर न जाये कहीं,,,
लुढ़क न जाये कहीं,,रुखसार पे….
स्वप्न सलोना मचल रहा था..
धडकनों में धड़क रहा था…
जागने से डर रही थी..
सैर पर निकल चली थी..
पाक शबनमी बूँद को मै..
मुट्टी में कैद कर चली थी..
नीले श्यामल कृष्ण से आकाश का.
वरण कबका मै कर चली थी..
गोरी राधा सी चांदनी के आँचल को..
अंजुरी भर हरसिंगार से जाने क्यूँ मै भर चली थी.
Author: Jyotsna Saxena (ज्योत्सना सक्सेना)