जंगल के राजा मातृत्व की छांव में – अनोखा प्रेम
गोरे रंग की दिखती है..
सबसे प्यार से मिलती है…
उसका प्यारा बच्चा है…
उछलकूद में पक्का है…
गाय के बारे में यह कविता इस तस्वीर पर बिल्कुल फीट बैठती है। वास्तव में गाय हमारी माता तो है ही पर भोली भी है। उसे नहीं मालूम कि जिसके पास वह बैठी है या जो उसके पास आकर जो बैठा है। वह कौन है और वह कितना खतरनाक है। परंतु यह भी तो हो सकता है कि जंगल के राजा मातृत्व की छांव का कुछ देर ही सही आनंद उठाना चाह रहे हो। गाय मेरी मॉं क्यो नहीं हो सकती.. नाथद्वारा के श्री नाथ जी की नगरी में रात को ये अनोखा प्रेम देखा गया है।