मैं

मैं गली गली में घूम रहा हूँ
जैसे किसी नशे में झूम रहा हूँ
मैं तो बस मैं को ढूँढ रहा हूँ
जिस मैं को बचपन में पाया
जवानी में जिस मैं का साथ निभाया

बुढ़ापे में उस मैं को कहाँ भूल आया
मैं गली गली में घूम रहा हूँ
जैसे किसी नशे में झूम रहा हूँ
मैं तो बस मैं को ढूँढ रहा हूँ
जिस दिन मैं मुझको नज़र आयेगा
उस दिन दिल ये खिल जायेगा
लेकिन मैं कभी तो मुझ से दूर जायेगा
प्रभु की तरफ मेरा ध्यान जायेगा
उस दिन ये इंसान बदल जायेगा
परोपकारी ये बन जायेगा
मैं को जब ये भूल जायेगा
उस दिन जीवन सफल हो जायेगा

(यहाँ एक मैं, मैं हूँ और दूसरा मैं मेरा अहम है)

Author: Durgesh Tripathi (दुर्गेश त्रिपाठी)

Poets Corner
Comments (0)
Add Comment