माँ का गीला बिछौना

कुछ भूल से गए हो तुम
माँ का गीला बिछौना
तुम्हारा सुख से सूखे में सोना
नींद से उठकर तुम्हे कम्बल में ढंकना
क्या केवल फ़र्ज़ था उनका
पापा के कंधे पर बैठ .. दुनिया की सैर करना
क्या तुम सच भूल गए हो..
”पाटी पूजा” कर लिखा स्लेट पर ”अ” से अनार
पहली पाठशाला को भूल पाओगे तुम..
गुरु तक.. प्रभु तक पहुँचने की सीढ़ी
कैसे न याद रही तुमको..
किराने वाले के उधार का उलाहना
तुम्हारी फीस के लिए गुल्लक फोड़ना
क्या वे यादे
तुम्हारी मोटर कार का धुआं निगल गया
तुम्हारी इन्जीनिएरिंग की पढाई के लिए लाला को दिए
गहने अब तक गिरवी रखे हैं..माँ की आँखे वीरान पड़ी हैं..
जबकि तुम्हारी बीबी के नेकलेस में हजारो नगीने चमक रहे हैं
कोई और दुःख देता तो माँ तुमसे कहती
तुम ही दुःख..पीड़ा और उपेक्षा दो.. उसे वो किससे कहे..?

Author: Jyotsna Saxena (ज्योत्सना सक्सेना)

MaaPoets Corner
Comments (0)
Add Comment