एक हरी खाकी वर्दी की चीख

मैं नहीं जानता ;क्या कहते है मेरे देश के लोग ,
क्यूंकि मेरे लिए कोई नहीं जाता इंडिया गेट , कैंडल लिए
क्या लिखते हैं अखबार , क्या चीखते है टीवी के लोग;
क्यूंकि मानसिक रूप से विकसित लोग बहस नहीं करते ,मेरे लिए ,

वर्दियों से राशन तक , गोलियों से गाड़ियों तक , सबकी बोली लगी है….
पर
मेरी मां की खांसी ,
इंतज़ार करते पिता के टूटे चश्मे ,
हर साइकिल की घंटी पर दरवाजे की तरफ ताकती;
बचपन के ही कपड़ों में बढ़ी होती मेरी बहना,
बारूदी सुरंगों के हर खबर पर , मेरी सलामती की दुआ लिए
गाँव के मंदिर की तरफ भागती मेरी पत्नी , ,
बोलो , क्या मोल लगाओगे ?????

मेरे; तुम सबकी हिफाज़त के लिए बलिदान होने के जज्बात का ,
नक्सल-आतंकवादी-दुश्मनों की ओर सीना तान खड़े रहने के हौसलों का ,
बर्फीले पहाड़ , जलते रेगिस्तान और दलदले जंगल में ढलती जवानी का ,
बतायो , इनकी कितनी दलाली पायोगे ????

मेरे शरीर से जश्न मनाते हैं दुश्मन के लोग ,
यह राजनैतिक नपुसंकता कब तक निभाओगे ???
अब तो मेरे बलिदान हुए जिस्म में जिन्दा बम लगा देतें हैं
आपकी सियासी और सामाजिक चालों के प्यादे ……..

देश के वोटों के बाज़ार में बिकते जमीरों के बीच ;
मेरी देशभक्ति की MRP ( कीमत ) क्या बतायोगे ?

Author: Poonam Shukla (पूनम शुक्ला)

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