एक दिन का भजन कीर्तन

आज महिला दिवस है
सोच रही हूँ खुद को क्या लिखूं ?
मान लिखू, सम्मान लिखूं
चीत्कार लिखूं , दुत्कार लिखूं
सहनशील या प्यार लिखूं
या फिर सवाल लिखूं ?
क्यों नारी दिवस पर ही
नारी की होती बखान है
या सिर्फ एक दिन का भजन कीर्तन है ।।

आज नारी शिक्षा से संपूर्ण है
हर क्षेत्र में कर्म में भरपूर है
कदम कदम वो साथ चली
कंधा मिला वो चाँद पर पहुँची
हर क्षेत्र में उसका बसेरा है
बिना ना उसके सबेरा है
ये कैसी रस्मअदायगी है
क्यो नारी दिवस पर ही
नारी की होती बखान है
या सिर्फ एक दिन का भजन कीर्तन है ।।

नारी है देश का गौरव
नारी संस्कृति ,सभ्यता ,है
तीज ,त्यौहारों, रस्म ,रिवाज
सब नारी से ही पहचान है
21वी सदी में जब करे सवाल
क्या नारी इन्सान नहीं है
क्या ये उसका अपमान नहीं
ये कैसा सम्मान है
क्यो नारी दिवस पर ही
नारी की होती बखान है
या सिर्फ एक दिन का भजन कीर्तन है ।।

नारी घर की चूल्हा चौका रोटी है
प्यार दुलार बाटे वो घर की माँ बेटी है
नारी के बिना अधूरी सारी सृष्टि है
नारी नर के लिए संजीवनी बुटी है
फिर क्यों नारी के लिए ?
उसके दिल में जगह छोटी है
ये कैसा छल “प्रेम”कपट है
क्यो नारी दिवस पर ही
नारी की होती बखान है
या सिर्फ एक दिन का भजन कीर्तन है ।।

Author: Neelu Prem (नीलू प्रेम)

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