सरकार की ‘अनुपम’ नियुक्ति

साल पहले जब टीवी धारावाहिक के कारण पहचाने जाने वाले गजेंद्र चौहान को फिल्म एन्ड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एफटीआईआई) का अध्यक्ष बनाया गया था, तब फिल्मी दुनिया ही नहीं, अन्य क्षेत्रों से भी इस नियुक्ति पर आश्चर्य और विरोध व्यक्त किया गया था। सूचना प्रसारण मंत्रालय ने अब अनुपम खैर को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया है। अनुपम के चयन पर विरोध के स्वर न तो फिल्म जगत में हैं, न ही अन्य क्षेत्र में। सरकार के इस निर्णय की प्रशंसा ही हुई है।

कीर्ति राणा
परिचय :- कीर्ति राणा, मप्र के वरिष्ठ पत्रकार के रुप में परिचित नाम है। प्रसिद्ध दैनिक अखबारों के विभिन्न संस्करणों में आप इंदौर, भोपाल, रायपुर, उज्जैन संस्करणों के शुरुआती सम्पादक रह चुके हैं। पत्रकारिता में आपका सफ़र इंदौर-उज्जैन से श्री गंगानगर और कश्मीर तक का है। अनूठी ख़बरें और कविताएँ आपकी लेखनी का सशक्त पक्ष है। वर्तमान में एक डॉट कॉम,एक दैनिक पत्र और मासिक पत्रिका के भी सम्पादक हैं।

अब कोई यह कहे कि, अनुपम तो मोदी के प्रशंसक हैं, विचारधारा के स्तर पर भाजपा के नजदीक हैं, उनकी पत्नी किरण खेर तो भाजपा से सांसद हैं ही.., तो ऐसे कारण और विरोध पर इसलिए गौर नहीं किया जा सकता कि, सरकार जिस दल की होगी वह अपने दल की नीतियों का समर्थन करने वालों को ही तो उपकृत करेगी। कांग्रेस जब तक सत्ता में रही,उसने भी ऐसे तमाम पदों पर नियुक्ति से पहले व्यक्ति को ठोंक-बजाकर देखा कि वामपंथी विचारधारा में विश्ववास रखने वाला तो फिर भी धक जाएगा, बस वह कट्टर हिंदूवादी-संघनिष्ठ न हो।

विचारधारा से जुड़ा होना गलत भी नहीं है, महत्वपूर्ण यह भी है कि जिस पद के लिए चयन किया गया है,वह उस पद जितनी काबिलियत भी रखता है या नहीं। सरकार के पिछले अध्यक्ष (गजेंद्र चौहान) और इस बार के (अनुपम खेर) चयन की बात की जाए तो सरकार से नीतिगत विरोध रखने वाले दल भी योग्यता-अनुभव आदि मानदंड पर अनुपम खैर का विरोध नहीं करेंगे। अनुपम खुद अपना फिल्म एक्टिंग स्कूल चलाते हैं। उनके अभिनय वाली फिल्मों मे ‘सारांश’ फिल्म ऐसी फिल्म के रुप में मील का पत्थर है, जिसमें तीस वर्ष से भी कम उम्र के अनुपम ने हताश बुजुर्ग पिता का किरदार निभाया था। यानी उन्हें अभिनय की विभिन्न विधाओं की गहरी पकड़ भी है।

यह संयोग ही है कि,फिल्म एन्ड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एफटीआईआई) के अध्यक्ष के रुप में जब वे कार्यभार ग्रहण करने जाएंगे, तब छात्र उनका स्वागत ‘बहिष्कार-आंदोलन’ से करेंगे। छात्रों का यह विरोध उनकी नियुक्ति को लेकर नहीं, बल्कि एफटीआईआई प्रशासन द्वारा द्वितीय वर्ष के छात्रों को डायलॉग वाली शॉर्ट फिल्म बनाने के लिए तीन दिन की बजाय सिर्फ दो दिन दिए जाने पर शुरू हुआ है। असल में दूसरे वर्ष में पढ़ने वाले पांच छात्रों को एफटीआईआई से निष्काषित किया गया है, और तीन दिन के भीतर हॉस्टल छोड़कर कैम्पस से बाहर जाने को कहा गया है। द्वितीय वर्ष के छात्रों को पांच-पांच के गुट में दस मिनट की शॉर्ट फिल्म बनानी होती है, जिसके लिए इन छात्रों को पहले तीन दिन दिए जाते थे, लेकिन अब इस काम के लिए सिर्फ दो दिन देने का निर्णय एफटीआईआई प्रशासन ने लिया है। छात्र इसका विरोध कर रहे हैं।

कम से कम अनुपम से तो यह अपेक्षा की ही जा सकती है कि,वे छात्रों के इस आंदोलन को पहली बैठक में ही समाप्त कराएंगे। अनुपम कलाकार हैं, संवेदनशील हैं और एक्टिंग स्कूल भी चलाते हैं, इस कारण छात्रों की परेशानी का सर्वसम्मत हल आसानी से निकाल सकेंगे। इस पहले मोर्चे पर वे छात्रों का दिल जीत लेते हैं,तो शेष कार्यकाल में यही छात्र इस नियुक्ति को अनुपम बताएंगे।

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