भरोसा नहीं था कि नरेन्द्र मोदी ऐसे जीतेंगे. अनुमान ग़लत निकले. चुनाव नतीजों के बाद केस स्टडी की कि मोदी शीर्ष पर कैसे पहुँचे? यह तिलिस्म कैसे रचा गया? क्या रणनीति रही? मार्केंटिग के फंडे क्या थे? मीडिया मैनेजमेंट कितना रहा? सोशल मीडिया को किस तरह उपयोग में लाया गया? कैसी भाषा बोली गयी? यूपी-बिहार कैसे फ़तह किया? यह चुनाव था या फिर युद्ध? सारी बातें पिरोकर रखी तो किताब बन गयी.
एक साधारण घर में जन्मे और बचपन में चाय बेचने वाले ने जो काम कर दिखाया, वह न केवल कड़ी मेहनत का नतीजा है, बल्कि सही रणनीति, मीडिया मैनेजमेंट, सोशल एक्टिविज्म, वाकपटुता, भाषण देने की कला, सादगी, भविष्य की योजनाओं का सही-सही निर्धारण, सही टीम का चयन आदि खूबियों का समन्वय है। प्रकाश हिन्दुस्तानी ने इस पुस्तक को लिखने के लिए नरेन्द्र मोदी की वेबसाइट, ब्लॉग, सोशल मीडिया, टीवी न्यूज चैनल, अखबार आदि की मदद ली है।
किताब का मुखपृष्ठ आकर्षक है। इसके मुखपृष्ठ पर मोदी की तस्वीर के साथ पीछे भारतीय लोकतंत्र का मंदिर संसद भवन दिखाया गया है। अंतिम पृष्ठ पर मोदी की वह तस्वीर नजर आती है जिसमें 20 मई 2014 को पहली बार जब वे संसद भवन पहुंचे तो संसद की सीढ़ियों पर दंडवत प्रणाम करते हुए नजर आते हैं। इसी पृष्ठ पर प्रकाश हिन्दुस्तानी का परिचय और फोटो भी प्रकाशित किया गया है।
किताब की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कुछ खास वाक्यों से होती है। फिर किताब की भूमिका में हिन्दुस्तानीजी लिखते हैं कि देश में दो ही तरह के लोग हैं- नरेन्द्र मोदी के समर्थक या उनके विरोधी। अंत में वे लिखते हैं कि यह नरेन्द्र मोदी की जीवनी नहीं है, बल्कि यह जानने की कोशिश है कि आखिर सत्ता के शीर्ष तक वे कैसे पहुंचे?
यह बहुत अच्छा है कि किताब के हर पन्ने के सबसे ऊपर नरेन्द्र मोदी के भाषणों से उद्धृत महत्वपूर्ण वाक्य लिखे गए हैं जिसे आप मोदी महामंत्र मान सकते हैं। कुल मिलाकर यह किताब मोदी के चुनावी अभियान, इंटरव्यू, रैली, भाषणों, चुनावी रणनीति, ट्विटर व फेसबुक पर किए गए ट्वीट और प्रचार, नेताओं के जुबानी हमले का जवाब और मोदी की सोच और इरादे का दिलचस्प दस्तावेज है।
निश्चित ही इस किताब को पढ़कर हर व्यक्ति को यह प्रेरणा मिलेगी कि कोई-सा भी कार्य या अभियान कैसे संचालित किया जाता है और कैसे उसे सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचाया जा सकता है। मैनेजमेंट और मार्केटिंग के अलावा जो राजनीति में दखल रखते हैं उनके लिए यह किताब प्रेरणादायक सिद्ध हो सकती है। यह किताब एक ऐसे व्यक्ति के संघर्ष का लेखा-जोखा है, जो पार्टी के भीतर और बाहर तमाम तरह के भारी विरोध को अंगूठा दिखाकर भारत के शीर्ष पद पर आसीन हो गया, कई विरोधियों का तो पत्ता ही साफ हो गया। निश्चित ही इस व्यक्ति में कुछ तो बात है कि अब विरोधी ‘नमो’, ‘नमो’ जपने लगे हैं।
एक किताब के तीन साल : नरेन्द्र मोदी ने 26 मई 2014 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी, लेकिन उसके एक दिन पहले ही 25 मई 2014 को इंदौर प्रेस क्लब में नरेन्द्र मोदी की चुनावी रणनीति पर ‘चायवाले से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी – एक तिलिस्म’ किताब का विमोचन हो चुका था। बाद में नरेन्द्र मोदी पर 450 से अधिक किताबें केवल हिन्दी में प्रकाशित हुई, जिसमें ‘चायवाले से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी – एक तिलिस्म’ अव्वल रही।